पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१२७

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दूसरा अध्याय कि कबीर के जीवन का बड़ा भाग काशी में व्यतीत हुआ था । परन्तु क्या इससे यह भी मान लिया जाय कि पैदा भी वे काशी ही में हुए थे ? यह असम्भव नहीं; हिन्दू भावों से ओत-प्रोत उनकी विचार-धारा भी इस बात की ओर संकेत करती है कि उनका बाल्यकाल काशी-सदृश किसी हिन्दू नगरी में हिन्दू वातावरण में व्यतीत हुआ था। आदि ग्रन्थ में के एक पद से मालूम होता है कि उनके विचार ही नहीं, आचार भी प्रारम्भ ही से हिन्दू साँचे में ढल गये थे। 'राम राम' की रट, नित्य नई कोरी गगरी में भोजन बनाना, चौका-पोतवाना, उनकी इन सब बातों से उनकी अम्मा तंग आ गई थीं। परन्तु आदि ग्रन्थ के एक पद में कबीर कहते हैं कि मगहर भी कोई मामूली जगह नहीं, यहीं तुमने मुझे दर्शन दिये थे। काशी में तो मैं बाद में जाकर बसा । इसी से फिर तुम्हारे भरोसे मगहर बस गया हूँ। इससे जान पड़ता है कि काशी में बसने के पहले वह केवल मगहर में रहते ही नहीं थे, वहीं उन्हें पहले पहल परमात्मा का दर्शन भी प्राप्त हुआ था। अधिक संभव यह है कि कबीर का जन्म मगहर ही में हुआ हो, जो आज भी प्रधानतया जुलाहों की बस्ती है। गोरखनाथ जी का प्रधान स्थान गोरखपुर मगहर के बिलकुल नजदीक है । जिस जमाने में रेल नहीं थी उसमें योगियों का गोरखपुर आते-जाते

  • नित उठि कोरी गगरी आने लीपत जीउ गयो।

ताना बाना कछू न सूझै हरि रसि लपटयो । हमरे कुल कउने रामु कह्यो। -वही, पृ० ४६२. ४। 3 तेरे भरोसे मगहर बसियो,मेरे तन की तपनि बुझाई । पहले दरसन मगहर पायो, फुनि कासी बसे आई। -वही, पृ. ४२३; क. ग्रं० पृ० २६६, १० ।