पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१२९

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दूसरा अध्याय . कहा है कि वे जटा बाँध-बाँध कर मर गये पर उन्हें सिद्धि न प्राप्त हुई।x इन सब बत्तों को देखते हुए मेरी प्रवृत्ति मगहर ही को उनका जन्म- स्थान मानने की होती है। माजूम होता है कि इसी लिए काशी छोड़ने पर मगहर को उन्होंने अपना निवासस्थान बनाया। योगियों तथा साधुओं के सत्संग से जब कबीर के हृदय में विरक्ति का भाव उदय हुआ तब वे पूर्ण आध्यात्मिक जागर्ति के लिए व्याकुल हो उठे । घर में रहना उनके लिए दूभर हो गया । कामकाज सब छोड़ दिया । ताना-बाना पड़े रह गए । संसार से उदासीन होकर जंगल छान डाले,% तीर्थाटन किए, पर उनके मन को शांति न हुई । परमात्मा के दर्शन करा देनेवाला कोई समर्थ साधु उन्हें मिला नहीं। हाँ, ऐले बहुत मिले जिनमें भक्ति कम, अहंकार अधिक था। परंतु कबीर को ऐसे लोगों से क्या मतलब था ? उनसे वे क्या सीखते ? हाँ, उन्हें सिखा अवश्य सकते थे। कामिनि अंग विरकत भया रक्त भया हरि नाई। साषी गोरपनाथ ज्यू, अमर भये कलि माई ॥ -वही, पृ० ५१, १२ ॥ + जटा वाँधि-बाँधि जोगी मूए, इनमे किनहु न पाई। -वही, पृ० १६५, ३१७ । ४ तनना बुनना तन तज्या कवीर, राम नाम लिख लिया सरीर । -वही, पृ० १५, २१ । == जाति जुलाहा नाम कबौरा, बन-बन फिरौं उदासी । -वही, पृ. १८१, २७० ।

वृदाबन ढूंढयों, ढूंढयौं हो जमुना को तीर ।

राम मिलन के कारने जन खोजत फिरै कवीर ।। -'पौड़ी हस्तलेख', पृ० १६४ (अ)

  • थोरी भगति बहुत अहँकारा । ऐसा भक्ता मिलें अपारा ॥

-क० ग्रं०, पृ. १३२, १३७ । ,