पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१३०

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1 हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय कबीर कुछ दिन मानिकपुर में भी रहे । शेख तकी को प्रशंसा सुनकर वे वहाँ से ऊँजी जौनपुर होते हुए झूसी गए । र सी में भी वे कुछ दिन नक रहे। उन्हें शेव तकी को बतलाना पड़ा कि परमात्मा सर्वव्यापक है; अकर्दी सकर्दी को जताना पड़ा कि तुम कुर्बानी जिबह इत्यादि करके पाप कमा रहे हो, किसी जमाने में भी ये काम हलाल नहीं हो सकते। वे बनने नहीं आये थे पर क्या करते, उनसे रहा नहीं गया !x वे नो स्वयं ऐसे एकाध आदमी को ढूंढ रहे थे जो रामभजन में शूर हो। उनको अनुभव हुआ कि परमात्मा के दर्शनों के लिए वन में ही कोई अनुकूल परिस्थिति नहीं होती । अंत में उनकी भी खोज सफल हुई और जनाकीर्ण काशी में उनको एक आदमी मिला, जो जाति-पाति के अहंकार से दूर था, परमात्मा के सम्मुख मनुष्य मनुष्य में किसी भेद- भाव को न मानता था, और जो अपने ज्ञान-बल से कबीर की महती x घट घट अविनासी अहै सुनहु तकी तुम सेख । -'बीजक', रमैनी ६३. मानिकपुरहिं कबीर बसेरी । मदहति सुनी सेख तकि केरी ॥ ऊजी सुनी जवनपुर थाना । झूसी सुनि पीरन के नामा । एकइस पीर लिखे तेहि ठामा । खतमा पढ़ें पैगंबर नामा ॥ सुनत बोल मोहिं रहा न जाई । देखि मुकर्बा रहा भुलाई ॥ नबी हबीबी.. के जो कामा । जहँ लौं अमल सबै हरामा । सेख अकर्दी सकी तुम मानहु बचन हमार। आदि अंत और जुग जुग देखहु दृष्टि पसार । वही, रमैनी ४८ ।

  • कहे कबीर राम भजवें को एक आध कोइ सूरां रे ।

ग्रं॰, पृ० ११५, ८५ । = घर तजि बन कियो निवास । घर बन देखौं दोउ निरास । -वही, पृ. ११३, ७६ । -के.