हिन्दो काव्य में निगुण संप्रदाय चचेरी बहनें थीं। उन्होंने भी अच्छी कविता की है। सहजोबाई ने सहजप्रकाश लिखा और दयाबाई ने दयाबोध । शिवनारायण गाजीपुर जिले में चंदबन गाँव के रहनेवाले क्षत्रिय थे। वे बादशाह मुहम्मदशाह (सं० १७६२ में वर्तमान ) के समकालीन थे। सैनिकों के ऊपर उनका बड़ा प्रभाव था। उनके १६. शिवनाराण अनुयायी प्रायः सभी राजपूत सैनिक थे। उनके मत में जाँति-पाँति का कोई भेद नहीं माना जाता था। अब तो यह संप्रदाय प्रायः समाप्त हो चुका है और शिवनारायण के उत्तराधिकारियों को छोड़कर कुछ थोड़े से नीच जाति के लोग ही उसके माननेवालों में रह गये हैं। शिवनाराण की समाधि बिलसंडा में है। उनके ग्रंथों में लवनथ, संतविलास, भजनपथ, शांतसुंदर, गुरु- न्यास, संतअचारी, सन्तउपदेश, शब्दावली, संतपर्वन, संतमहिमा, संतसागर के नामों का उल्लेख होता है। उनका एक और मुख्य प्रथ है जो गुप्त माना जाता है। सिखों की भाँति शिवनारायणी भो पुस्तक की पूजा करते हैं । नवीन सदस्यों को संप्रदाय में दीक्षित करने के लिए एक छोटा सा उत्सव होता है जिसमें लोग मूल-ग्रथ के चारों ओर पूर्ण रूप से मौन होकर वृत्ताकार बैठ जाते हैं। और पुस्तक में का कोई एक भजन गाकर पान, मेवा, मिठाई वितरण के बाद उत्सव समाप्त कर दिया जाया है। गरीबदास कबीर के सबसे बड़े भक्त हो गए हैं। ये जाति के जाट और पंजाब के रोहतक जिले के छुड़ानी गाँव के रहने वाले थे। इन्होंने हिरंबरबोध नामक एक वृहत् ग्रंथ की रचना १७. गरीबदास की जिसमें सत्रह हजार पद्य बतलाये जाते हैं। इनमें से सात हजार कबीर साहब के कहे जाते हैं। परन्तु इनका यह ग्रंथ अभी प्रकाशित नहीं हुआ है, उसका केवल एक बहुत संक्षिप्त संकनित संस्करण, संतबानी पुस्तकमाला में, प्रकाशित हुआ है।
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