पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१७९

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तोसरा अध्याय परमेश्वर की इस अनंत शक्ति को निर्गुणपंथी अस्वीकार नहीं करते । परंतु उनके लिए परमेश्वर के स्वरूप का यह केवल एक गौण लक्षण है। परमेश्वर इस विश्व का कर्ता-धर्ता, नियन्ता, शासक और अधिपति ही नहीं बल्कि व्यापक तत्व भी है। वह घट-घट में कण-कण में अणु-परमाणु में व्याप्त है और वही हममें सार वस्तु है । परमेश्वर परमेश्वर ही नहीं परमात्मा भी है । वह हमारे आत्मा का आत्मा है। मुसलमानी विश्वास और निर्गुणपंथी अनुभूति में जो अन्तर है, उसे कबीर ने संक्षेप में इस तरह व्यक्त किया है- मुसलमान का एक खुदाई । कबीर का स्वामी रह्या समाई ॥+ दादू ने वेदांत के सर्वप्रिय दृष्टांत का आसरा लेकर कहा, दूध में घी की तरह परमात्मा विश्व में सर्वत्र व्याप्त है।x नानक ने परमात्मा के सम्मुख निवेदन किया- "जेते जी जंत जलि थलि माहीं अली जत्र कत्र तू सरब जीश्रा। गुरु परसादि राखिले जन कर हरिरस नानक झोलि पीआ॥": परमात्मा का यह व्यापकत्व उसकी अनंत शक्ति का एक पक्ष मात्र नहीं, जैसा सामो विचार-परंपरा के अनुसार ठहरेगा, बल्कि उसी में उसकी सार-सत्ता है। यहीं उनके प्रेम-सिद्धान्त की आधारशिला है। यह व्याप्ति कहीं न्यून और कसी अधिक नहीं । परमात्मा सब जगह अपनी पूर्ण सत्ता के साथ विद्यमान है। परंतु उसकी पूर्णता यहीं समाप्त + ग्रंथ, पृ० ६२६ । क० ग्रं॰, पृ० २०० ३०० । x घीव दूध में रमि रहा व्यापक सब ही ठौर । -बानी, भा० १, पृ. ३२ ।

  • 'ग्रंथ', ६०६ ।