पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१८६

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हिन्दो काव्य में निर्गुण संप्रदाय परंतु इतना सब होने पर भी कबीर के स्पष्ट शब्दों में सच तो यह है कि "पर्मात्मा को कोई जैसा कहे वैसा वह हो नहीं सकता, वह जैसा है वैसा ही है ।" कैसा है ? कोई नहीं बता सकता। परमात्मा को संबोधित कर कबीर ने कहा था- जस तूं तस तोहि कोइ न जान । लोग कहैं सब प्रानहि आन ॥+ सुन्दरदास भी प्रायः इन्हीं शब्दों में कहते हैं- जीइ कहूँ सोइ, है नहिं सुन्दर, है तो सही पर जैसे को तैसो । यहाँ पर इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि सूक्ष्म ब्रह्म- भावना का विस्तार-पूर्ण उल्लेख थोड़े ही संतो में पाया जाता है । उदा- हरण के लिए नानक में ऐसे स्थल भी मिलते हैं जो परब्रह्म की सूक्ष्म से सूक्ष्म निर्विकल्प भावना में भी घट सकते हैं । एक जगह नानक ने कहा है, और आगे क्या है, इसे कोई कह नहीं सकता, जो कहेगा उसे पीछे पछताना पड़ेगा ।।x क्योंकि उसका कयन ठीक हो नहीं सकता, परंतु नानक ने अपने समय की स्थिति के कारण, जिसका मैं उनके जीवन- वृत्त में उल्लेख कर आया हूँ, एकेश्वर अधिदेवता की ही भावना की ओर अधिक ध्यान दिया है। इसीलिए उन्होंने जपजी में कहा कि अगर परमात्मा का लेखा हो सकता है तो लिखो परंतु लेखा तो नाशवान् है, वह अविनाशी का कैसे वर्णन कर सकता है, नानक तू इस

  • जस कथिये तस होत नहिं, जस हे वैसा सोइ-वही. पृ० २३० ।

+ क०, ग्र०, पृ० १०३, ४७ । 'ज्ञान-समुद्र'। x ताकी आगला कथिया न जाई । जे को कहै पिछै पछिताउ । --'जपजी', ३५।