पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२००

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१२० हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय परंतु शिवदयाल, प्राणनाथ आदि अन्य संत यद्यपि इस बात को मानते हैं कि जीवात्मा का अंततः परमात्मा में निवास है. फिर भी वे यह नहीं मानते कि वह पूर्णब्रह्म है । उनके अनुसार ५. अंशांशि संबंध जीवात्मा भी परमात्मा है अवश्य, परंतु पूर्ण नहीं, परमात्मा अंशी है और जीवात्मा अंश । प्राणनाथ कहते हैं- अब कहूँ इसक बात, इसक सबदातीथ साख्यात । ब्रह्म सृष्टि ब्रह्म एक अंग, ये सदा अनंद अतिरंग ।।x अर्थात् सृष्टि अत्यंत आनंदमय प्रेम-स्वरूप परमात्मा का एक अंग मात्र है। शिवदयाल ने अद्वैतवादी वेदांतियों के सम्बन्ध में कहा है कि सत्य पुरुष के पास से आनेवाली अंरारूप जीवात्मा (सुरत) का वे रहस्य नहीं जानते- सुरत अंश का भेद न पाया । जो सतपुरुष से प्रान समाया । रायबहादुर शालिग्राम ने भी अपनी प्रेमबानी में कहा है- जीव अंस सत पुरुष से आई ।... पुरुष अंस तू धुरपद से आई । तिरलोकी में रही फंसाई ।। शिवदयाल ने आत्मा और परमात्मा का भेद इस तरह स्पष्ट किया है. पक्ति और भगवन्त एक है, प्रेम रूप तू सतगुरु जान । प्रेम रूप तेरा भी भाई सब जीवन को यों ही जान ।। एक भेद यामें पहिचानो, कहीं बुंद कहीं लहर समान । कहीं सिंध सम करे प्रकामा, कहीं सोत औ पोत कहान ॥8 x ‘ब्रह्मबानी', पृ० १ (खोज रिपोर्ट )।

‘सार बचन', भा० १, पृ० ८५ ।

'प्रेमबानी', भा० १, पृ० ५४ ।

  • 'सारवचन', भाग १, पृ० २२६ ।

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