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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२०४

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हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय पढ़ने से मालूम होता है कि प्राणनाथ के अनुसार मोक्ष उस चिन्द्र प लीला में सम्मिलित होकर सहायक होने का सौभाग्य प्राप्त करना है, जिसमें 'ठाकुर' और 'उकुराइन' अपने धाम में निरन्तर निरत हैं। यह भी इसी बात का सूचक है कि अंत में भी प्राणनाथ जीवात्मा परमात्मा में स्पष्ट भैद मानते हैं। | इस प्रकार इस श्रेणी के संतों का मत है कि जीवात्मा की घरमावस्था परमात्मा के साथ सभेद मिलन है। अंत तक परमात्मा परमात्मा ही रहता है और जीव जीव ही; दोनों का भेद कभी नष्ट नहीं होता। कबीर सख्श अद्वैतवादी के मतानुसार यह मत भ्रामक है, क्योंकि यह पूर्ण ब्रह्म का अपूर्ण स्वरूप है। इसके अनुसार अखण्ड ब्रह्म या तो इतनी जीवात्माओं में विभाजित हो जाता है या परब्रह्म परमात्मा के अतिरिक्त और वस्तुओं (जीवात्माओं ) की भी सत्ता मान ली जाती है और इस प्रकार प्रखण्ड पूर्ण ब्रह्म की अखंडता और पूर्णता व्यवधान में पड़ जाती है। अतएव उनके अनुसार ऐसे संतों की साधना अधूरी है। उन्हें अभी अपनी पूर्ण सत्ता का ज्ञान नहीं हुआ है, जैसा दादू ने खंड खंड करि ब्रह्म को पख पख लीया बाटि । दादू पूरण ब्रह्म तजि बँधे भरम की गौलि 18 परन्तु स्वयं इन अंशांशि भाववानों के अनुसार बात ऐसी नहीं है। धे भी इस बात की घोषणा करते हैं कि परमात्मा प्रखंड और पूर्ण है, प्राणनाथ कहते हैं, इरक जो सब संतों के लिए परमात्मा का ही दूसरा नाम है, प्रखंड, चिरंतन और नित्य है-"इसक प्रखंड हमेशा नित्त ।"+

  • 'बानी' (ज्ञानसागर), पृ. ११.।

+ 'प्रेमपहेली', पृ. ५ ( खोज रिपोर्ट )