हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय कारण राधास्वामी (. परमात्मा) सुरत (जीवात्मा) को अपने से वियुक्त कर कालपुरुष (यम) को सौंप देता है ; अन्यथा जीव दयाल की दया के महत्व को नहीं समझ पाता । इसी दया के महत्व को प्रकट करने के उद्देश्य से कालपुरुष की भी रचना हुई है । जब सुरत को दयाल की दया का महत्व मालूम हो जाता है, तब वह काल के फंद. से छुड़ा लिया जाता है और उसे फिर परमात्मा के शाश्वत् समागम का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। प्रायः सभी धार्मिक दर्शनों में वियोग का यही कारण बतलाया जाता है । विशिष्टाद्वतियों तथा भेदाभेदियों के लिए यह वास्तविक कारण है और इस संबंध में वह उनकी जिज्ञासा की भी शांति कर देता है। परन्तु अद्वैतवादियों के अनुसार तो वियोग भी केवल एक व्याव- हारिक सत्य है । पारमार्थिक रूप में तो कभी वियोग हुश्रा ही नहीं था इसलिए वियोग का यह कारण भी व्यावहारिक ही हो सकता है। इसका उपयोग केवल उन्हों लोगों को समझाने के लिए किया जा सकता है जो अभी अज्ञान के प्रावरण को नहीं हटा पाये हैं । केवल जीवात्मा ही नहीं, परिवर्तनशील तथा नाशवान् जड़ पदार्थ भी जो श्रात्मा के आवरण का काम देता है और ६. जीवात्मा बाह्य जगत का निर्मायक है, परमात्मतत्व के घेरे के और जड़ जगत् बाहर नहीं। “जहँ देखो तहँ एकौएक” का यह एक दूसरा स्वाभाविक परिणाम है । जब सब कुछ हो परमात्मा है तब जड़ पदार्थ को ही कैसे कह सकते हैं कि वह पर- मात्मा नहीं। परन्तु इस संबंध में भी हमारे इन संतों में तीन प्रकार की विचारधाराएँ दिखाई देती हैं। कबीरे आदि पूर्णाद्वैती तो विवर्त- वाद के समर्थक हैं । उनके अनुसार दृश्य जगत् का मूल अधिष्ठान भी परब्रह्म ही है। परब्रह्म ही एक मात्र सत्तत्व है जिसके ऊपर नाम और रूप का अध्यारोप होता है। अलक्ष्य परब्रह्म हो मायाविष्ट जनों को लक्ष्य / 1
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