पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२३१

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तीसरा अध्याय १५१ ही, मिट जायगा। नलूकोप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणं (भतृ हरि)। इसके अतिरिक्त दैनिक व्यवहार में भी कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें बिना प्रमाण कही-सुनी बातों के आधार पर ही हम सत्य मान लेते हैं। तब हमें क्या अधिकार है कि हम उन द्रष्टाओं का 'जो स्वानुभव से इन बातों का ज्ञान रखते हैं, केवल इसलिए अविश्वास कर बैठे कि वे जो कुछ कहते हैं वह हमारी तर्क-बुद्धि की पहुँच के बाहर है, इससे तो यही सिद्ध होता है कि हम उन पर संदेह करने के अधिकारी नहीं । परन्तु विज्ञान और बुद्धिवाद के इस युग में भी जब आधुनिक दार्शनिकों को किसी समय सहसा प्रकाश की वह धुंधली सी झलक दिखाई दे जाती है जिसे वे फिलासफी अथवा विज्ञान को ज्ञात मन की किसी वृत्ति के द्वारा सिद्ध नहीं कर सकते, तब उन्हें इस सहज ज्ञान- वृत्ति के अस्तित्व को मानने के लिए बाध्य होना ही पड़ता है। हक्सले का भी कुछ यही हाल था। हक्सले कहते हैं- "मुझे यह काफी स्पष्ट जान पड़ता है कि बुद्धि और चेतना के अतिरिक्त एक और तीसरी चीज़ भी है जिसे मैं अपने दिल या दिमाग में न तो पदार्थ के देख सकता हूँ न बुद्धि और चेतना के किसी परिवर्तित रूप में--चाहे चेतना की अभिव्यक्ति के साथ भौतिक पदार्थ का कितना ही घनिष्ट संबंध क्यों न हो?" विलियम जैम्स की शब्दावली में जो वहाँ पहुँच चुके हैं और जानते हैं' (हू हैव बीन दियर ऐंड नो)-वराइटीज़ ऑव रिलिजस एक्सपीरियंस, पृ० ४२३ । 8 इट सीम्स टु मी प्रेटी प्लेन दैट दिअर इज़ ए थर्ड थिंग, इन दि यूनिवर्स टु विट, काँशसनेस, ह्विच इन दि हार्डनेस अॉव माइ हार्ट और हेड, आइ केन्नॉट सी टू बी मैटर और एनी 1