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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२३२

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१५२ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय इस सहज ज्ञान-वृत्ति के समर्थन में अविश्वासी पश्चिम से एक और अधिक अधिकारपूर्ण स्वर सुनाई दे रहा है । यह स्वर है फरासीसी तत्वज्ञ बर्गसाँ का “वर्गसाँ के सिद्धांतों की श्राधारशिला ही सहजानुभूति की प्रणाली है। उनके लिए “सहजानुभूति के द्वारा किसी तथ्य के अंतरतम में प्रवेश कर जाना हो तत्वान्वेषण है।'+ सहजानुभव वह (विवेक पूर्ण सहानुभूति है जिसके द्वारा तत्वान्वेषक अपने आपको ज्ञेय विषयों के अंतरतम में ले जा रखता है, वहीं वह एकमात्र अनुपम सत्ता है जो विचारों द्वारा समझ में नहीं आ सकती। संक्षेप में वास्तविक सत्ता के हृदय के स्पंदन का अनुभव कर लेना तत्वान्वेषण है।"x यह सहज ज्ञान वृत्ति अथवा अंतर्ज्ञानवृत्ति ( इंट्यूशन) जैसा स्वयं शब्द ही से स्पष्ट है प्रत्येक व्यक्ति में सहजात है। वह विचार वृत्ति तथा इंद्रिय ज्ञान के परे तो है परन्तु उसकी प्राप्ति उन्हें कुंठित करने से नहीं होती। उसकी जागर्ति के लिए उनका पूर्ण संस्कार होना आवश्यक है । कबीर की परिभाषा में सहज वृत्ति पाँचों इन्द्रियों का स्पर्श करती हुई उनकी रक्षा करती है जिससे इंद्रियार्थों को त्याग कर परब्रह्म की प्राप्ति सरल हो जाती है।= बर्गसाँ ही की भाँति “निर्गुणी भी बुद्धि को हेय कन्सीवेबल माडिफिकेशन प्राव आइदर, हाउ एवर इंटिमेटली दि मैनिफेस्टेशन प्राव दि फ़िनामैना आय काशसनेस में बी कनेक्टेड विद दि फिनौमेनन ऐज मैटर ऐंड फर्स-हवसले के 'साइंस एण्ड मारल्स, से किंग्सलैंड द्वारा उद्धृत, रैशनल मिस्टिसिज्म पृ० १३१-१३२ । + इंट्यूटिव मेथड, पृ० ८६ । ४ जे० एम० स्टेवर्ट-क्रिटिकल एक्सपोजीशन प्राव् बर्गसा'ज फिलासफी, पृ० ५। = सहज सहज सब. कोउ कहै, सहज न चीन्हें कोइ । पाँचौ राखै परसती सहज कहीजे सोइ ।।...