पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२४८

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१६८ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय चौपाई को साभिप्राय दृष्टि से उद्धृत किया है, जिसमें राम को भी मानना पड़ा है कि बिधाता के लेख को कोई नहीं मिटा सकता- हँसि वोले रघुवंश कुमारा । बिधि का लिखा का मेटन हारा ।। कर्म प्रधान विश्व रचि राखा । जो जस करै सो तस फल चाखा ।। नानक ने भी इसी अभिप्राय का एक पद कहा है जो अादि ग्रन्ध में तो नहीं है पर 'मेकौलिफ' के ग्रंथ में अनुवादित है- “राम ने लक्ष्मण और सीता के लिए विलाप किया। उन्हें हनुमान से सहायता लेनी पड़ी। मूर्ख रावण नहीं जानता था कि मेरी मृत्यु का कारण राम नहीं, परमात्मा है। हे नानक परमात्मा स्वतन्त्र है पर राम भाग्य के लेख को नहीं मिटा सके । सतयुग, त्रेता और द्वापर जिन्हें हिंदू कलियुग से बहुत अच्छा समझते हैं, तुलसी साहब को बुरे लगते हैं, क्योंकि उनमें अवतारों की अधिकता हुई जिन्होंने मारकूट करना सिखाया, परमपद की राह नहीं दिखाई। पिछले संतों की पर-प्रवृत्ति भी अवतारों के विरुद्ध पड़ती है । तुलसी साहब के अनुसार दस अवतार परमात्मा के नहीं, काल के हैं । जो जगत् को भ्रम में डालता है और पकड़ कर खाता रहता जैसा = "रत्नसागर", पृ० १८, "रामचरितमानस',

  • मेकौ लिफ-"सिख रिलीजन" १ म पृ० ३८२ ।

+ द्वापर त्रेता का यह लेखा । ये युग में प्रोतार विशेषा । मारि निसाचर जग के माहीं । यह लीला उनने दरसाई ।। जीव जेहि घर से चलि आया। वहि घर राह नहीं दरसाया ।। मारकूट संग्राम सुनाया। प्रातम हति जिव मारन गाया ।। -"रत्नसागर", पृ० १२२ । x दस अवतार काल के जाना। जामें सारा जगत भुलाना ।। -"घट रामायण", पृ० २८० । 1X --