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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२९८

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२१८ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय महौषध रूप है। जिसने इसे ग्रहण कर बतलाये हुए संकेतों का अनु- सरन किया उसकी सारी वेदना जाती रहेगी।"x और नानक ने भी इसी प्रकार कहा है, "नाम का जप हृदय से करनेवाले के सभी परिश्रम सफल हो जाते हैं और उसका मुख उज्ज्वल हो जाता है, नानक का कहना है कि उसके संसर्ग में श्राकर दूसरे भी मुक्त हो जाते हैं।": कबीर ने भी यों कहा है कि "नाम का एक अणुमात्र भी हृदय में श्रा जाने पर, करोड़ों कर्मों का जाल एक सा में ही, नष्ट हो जाता है । परन्तु बिना राम के युगों तक पुण्य करते जाने पर भी, कोई लाभ नहीं।"3 राधास्वामी संप्रदाय के अनुयायियों के अनुसार नाम-स्मरण हमारे जीवन के लिए प्राणों के समान महत्ता रखता है। / यद्यपि कबीर ने अनन्त के नाम भी असंख्य बतलाये हैं, किंतु सबसे बढ़कर उन्होंने सुमिरन के लिए 'राम' नाम को ही माना है और इसे ही स्वीकार भी किया है। उन्होंने सबके लिए यही उपदेश दिया है कि तुम.. 'रा' का टोप और 'म' का बख्तर पहना करो जो, शरीर के प्रभातबेला के x सत्तनाम निज औषधी, सतगुरु दई बताय । वोषधि खाय रु पथ रहै, तो वषना बेदन जाय ॥ 'सर्वांगी', पृ० १७-३७॥ सं. बार सं. . १, पृ? ५ पर यह दोहा कुछ परिवर्तन के साथ कबीर के नाम से दिया हुआ है।

  • जिनी नामु धिमाइया, गए मसकति घालि ।

नानक ते मुख कज़ले, केती छूटी नालि ।। 'जपजी' (अंतिम प्रथ), कोटि कस्म पेले प्रलक में, जे रंचक पावै नाउ । अनेक जुा जो पुनि करे, नहीं राम बिनु ठा। क? ग्रं, पृ० २९॥ .