पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३१२

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२३२ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय बना लेनी चाहिए । मानव शरीर से महत्वपूर्ण स्नायुकेन्द्रों वा संस्थानों का अस्तित्व बतलाया जाता है जिन्हें योगी व निगुणा लोग चक्र अथवा कमल कहा करते हैं और जिनमें ईश्वरीय शक्ति के गुप्त रूप से किंतु क्रमशः बढ़ते हुए परिमाण में वर्तमान रहने में, विश्वास किया जाता है (योगियों की भाँति, अधिकतर निगुणी भी यही मानते हैं कि मानव शरीर की रचना , उसके अतर्गत, इनमें से छः कमलों के साथ हुई हैं, वे उसके भिन्न-भिन्न भागों में बने हुए हैं और उन सबके ऊपर एक शोष कमल की प्रधानता है। गुदास्थान एवं जननेन्द्रिय के बीच, जिसे योनि भी कहते हैं भौर, जो स्त्रियों की गुप्तेन्द्रिय को जगह पड़ता है, "मूलाधार" नाम का कमल है जिसे निगुणी लोग बहुधा केवल मूल नाम से अभिहित करते हैं, और (जिसके चार दलों में एक सूर्य निवास करता है। 'स्वाधिष्ठान चक्र' (वा स्वाद) छः दलों का कमल हे जो जननेन्द्रिय के मूल में अवस्थित है। 'मणिपूर' वा नाभिचक्र दस दलों का है जिसका स्थान नाभि-प्रदेश है और इसी प्रकार बारह दलों का 'आवाहन' व हृदयचक्र हृदय में, सोलह दलों का विशुद्ध' वा कंठचक्र कंठस्थान में तथा 'प्राज्ञा' वा अाकाश चक्र, जो केवल दो दलों का है, दो भौंहों के बीच वर्तमान है। मस्तिष्क प्रदेश के अन्तर्गत वह शीर्षकमल है जो 'सहस्रार' कहलाता है और उसमें सहस्र दल हैं जैसा कि उसके नाम से भी प्रकट होता है। बनारस के निकट सारनाथ में जो बुद्ध की मूर्तियाँ रखी हुई हैं उनमें से कुछ में पहले ऐसा जान पड़ता है कि उनके शिर पर एक छोटी सी बानदार टोपी बनी हुई है, किंतु उनमें जो उक्त टोपी के पाकुचित अधोभाग जान पड़ते हैं वे वस्तुतः इस कमन के दन ही हैं। निर्गुणियों को भी इन चक्रों के अस्तित्व में विश्वास है किंतु वे सभी इनके दलों की संख्या एक ही समान नहीं ठहराते। कबीर व अन्य बहुत से निर्गुणी, उक्त साम्प्रदायिक धारणा से, संख्या के विषय