चतुर्थ अध्याय २३३ में पूर्ण सहमत हैं किंतु शिवदयाल साहब के अनुसार योगशास्त्रों द्वारा बतलाये गये छहों चक्र उनके स्थूल रूपों को ही प्रकट करते हैं और उनका पिंड अथवा मुख्य शरोड भाग से संबंध है, उनके अतिरिक्त अन्य ऐसेही चक्रों के तीन और भी समूह हैं जिनमें से प्रत्येक में क्रमश: बढ़ती हुई सूक्ष्मता के साथ तीन-तीन चक्र वर्तमान हैं । इन तीनों अन्य समूहों में से सबसे नीचेवाले का संबंध ब्रह्मांड से है ( जो अंडाकार विश्व का प्रतिरूप होने के कारण, मस्तिष्क का ही एक नाम है ) और जिसमें सहस्रदल कमल, त्रिकुटी एवं दशम द्वार वर्तमान हैं। ब्रह्मांड के प्रागे वाले मध्य- वर्ती समूह में अचिंत्य कमल, भवर गुफा व सत्यपद हैं। कहा जाता है कि योगियों को भी ब्रह्मांड के इन चक्रों का केवल एक धुंधला सा ही दर्शन होता है। संत अथवा निर्गुणो महात्मा ही सत्यपद तक पहुँच सकते हैं । अंतिम तीन पदों का ज्ञान केवल शिवदयाल साहब को अथवा उन लोगों को ही है जिन्हें उन्होंने बतलाने की कृपा की होगी । शिवदयाल के अनुयायियों ने पिंड, ब्रह्मांड तथा उसके परेवाले समूह के सादृश्य को पूर्ण करने के विचार से इन ऊपरवाले समूहों की संख्या को घटा कर दो कर दिया है और, इस प्रकार चक्रों की कुल संख्या को तीन मान लिया है। इसलिए ऊपर के जो दो चक्र-समूह मस्तिष्क के भूरे एवं श्वेत भाग में पड़ते हैं उनमें से भी प्रत्येक में उनके अनुसार छः चक्र ही बने हुए हैं। उन लोगों ने, मानव शरीर एवं विश्व में सादृश्य दिखलानेवाले अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते समय अाधुनिक शरोर-विज्ञान व खगोल विद्या-संबंधी अपने ज्ञान का भी प्रयोग करने की चेष्टा की है। विश्व-रचना-विषयक उनकी धारणा नितांत अपनी है। उनके अनुसार इसके तीन बड़े-बड़े भाग हैं जो, हमारे सौर संप्रदाय के प्रधान नक्षत्रों को लेकर, चक्रों के स्थूलतम समूह की जगह पर हैं और जिनमें 8 'सारबचन' भाग २, पृ० ३६८-६ ।
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