२३४ हिंदी काव्य में निगुण संप्रदाय भौतिक व आध्यात्मिक जगत् दोनों ही वर्तमान हैं किन्तु जहाँ श्रात्मा के ऊपर भौतिक तत्वों की प्रधानता है। अभी देखना यह है कि कोई इससे भी आगे बढ़कर, उक्त सादृश्य में कैप्टेन (Kaptiyn) शैनली (Shanly) और डि सिल्टर (De Silter :-नामक विश्वों को भी स्थान दे देता है या नहीं , जिनका पता उन नामोंवाले महान् ज्योतिषियों ने अन्वेषण करके संसार को बतला दिया है। उन प्रदेशों के दो अन्य भी बड़े-बड़े भाग हैं। इनका सादृश्य वे चक्रों के उन दो सूक्ष्म समूहों के साथ ठह- राते हैं जो मस्तिष्क के क्रमशः भूरे एवं श्वेत अंशों में बतलाये जाते हैं और जिनमें से प्रत्येक में उन चक्रों के चिह्न-स्वरूप छः छिद्रों का होना भी कहा जाता है। कबीर के भो एक पद में, जो स्पष्ट रूप में क्षेपक है, इस प्रकार के तीन विभागों की चर्चा की गई है जिनमें से प्रत्येक में सात प्रदेश हैं और जिनके आगे भी अन्य पाँच अलौकिक लोक हैं । बड़े विभाग के सबसे नीचेवाले प्रदेश को पाताल कहा गया है, बीचवालों के नाम अाकाश दिये गये हैं और सबसे ऊपरवाले सुन्न कहे गये हैं। मेरे विचार से ऐसा करना रहस्यवादी-शरीर-विज्ञान के क्षेत्र में दार्शनिक परात्पर वाद को ला जोड़ना है। परंतु जैसा कि मैंने अन्यत्र भी कहा है, प्रदेशों की इस अनियमित संख्या वृद्धि का एकमात्र प्राधार वा प्रमाण अनुभव के क्षेत्र में ही ढूंढा जा सकता है। जो हो, इतना स्पष्ट है कि कबीर के छः चकों तथा यदि सहस्रार को शीर्ष-चक्र कहा जाय तो उसके भी अतिरिक्त और अधिक नहीं माना था और कुछ नाम, जो उक्त परात्परवादियों द्वारा उनके बतलाये गये उच्च स्थानीय चक्रों को दिये गये हैं, वे नीचेवाले प्रदेशों को ही देते हैं । उदाहरण के लिए भवर गुफा को उन्होंने अनाहत चक्र में तथा त्रिकुटी को आज्ञाचक्र में स्थान दिया है। इन चक्रों से वस्तुतः सम्बन्धित होने पर भी, बहुसंख्यक पदों को अपना अस्तित्व सिद्ध करने के लिए नितांत भिन्न स्थान ग्रहण करना पड़ेगा। उक्त षटचक्र नियामक प्रेस-बटनों वा उन कुजियों के समान
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