. २६२ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय पृष्ठों में किया है। नीचे मैं उक्त विवरण को तालिका के रूप में देना चाहता हूँ। उस तालिका को देखने से पता चलेगा कि उसके अनुसार सूचम शब्द की अभिव्यक्ति, सूक्ष्म शब्द के रूप में, चक्र ( संख्या ६-११) के मध्वर्ती खंड में ही अनुभूत होती है। अंतिम खंड ( सं० १-५) कदाचित् इतना स्थूल समझा जाता है कि नाद वहाँ पर झंकृत नहीं हो पाता और सबसे ऊपर वाला ( सं० १२-१४ ) इतना सूक्ष्म होता है कि वहाँ पर चक्रों, शब्दों, ध्वनियों, वर्णों व श्राकारों को उनके अधिष्ठाता देवताओं वा धनियों से पृथक नहीं किया जा सकता । यह भी उल्लेखनीय है कि यद्यपि इन वर्णनों तथा गरीबदास एवं शिव- दयाल के वर्णनों में थोड़ा-बहुत अंतर है, किंतु मूल बातों में से एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं। सभी देशों के सत्यान्वेषी इस बात में सहमत हैं कि आध्यात्मिक मार्ग में बहुत सी स्थितियाँ होती हैं । बौद्ध धर्म के अनुयायियों का विश्वास है कि इस मार्ग की सीढ़ी में आठ भंगियाँ है जिन्हें वे 'अष्ट विमोक्ष सोपान' कहते हैं । ये सोपान इस प्रकार क्रमशः 'रूपायतन' जिसमें स्थूल भौतिक पदार्थों का अनुभव होता है, 'अरूपायतन' जिसमें चित्त, वाह्य पदार्थों का चित्र संस्कार कारण सुरक्षित रखता है किंतु उसे किसी क्षण अनुभव नहीं करता 'नैवरूप नैवारूपायत्' जिसमें न तो वाह्य पदार्थ चित्त पर कोई संस्कार जमा पाते हैं और न इंद्रियों पर उनका कोई प्रतिबिंब ही पड़ता है। 'श्राकाश वत्यायतन' जिसमें साधक सभी वस्तुओं को आकाशवत् देखा करता है 'विज्ञावंत्यायतन' जिसमें सभीवस्तुएँ विज्ञान वा भावना के रूप में देखी जाती हैं अंकिच- न्यायतन, जिसमें सभी वस्तुएं शून्यवत् समझी जाती हैं नैवसंज्ञा नैवा .
- कबीर साहब की बानी, पृ० १०४-६ ।