पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३४६

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२६४ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय कारण नहीं दोखता कि गरीबदास अपनो सात सीढ़ियों के अंत में शिवदयाल की पन्द्रह सीढ़ियों की अंतिम स्थिति से कम दूरी तक हो पहुँचे होंगे। शिवदयाल जैसे अतिमात्रा वादियों की भाँति विभिन्न शब्दों का उल्लेखन करना उनके विपक्ष में नहीं जाता । यहाँ पर यह कह देना रुचिकर होगा कि गरीबदास के चक्र जिस योग-पद्धति के साथ समानता रखते हैं उसमें भी उन सभी शब्दों का सुना जाना ब्रह्मरंध्र वा सहस्त्रार के दसवें द्वार के खुज जाने ब्रह्म के अंतिम दर्शन के पूर्व ही बतलाया गया है। इन आभ्यंतरिक अनुभवों पर इनके आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हुए भी स्वभावतः नियमीकरण की दृष्टि से विचार करना आवश्यक है। थार्सट का आध्यात्मिक मार्ग को काल्यनिक सिद्धि' का नाम देना इसी अभिप्रायः से है। साधक को अपने गुरू के सत्संग द्वारा यह पता चल जाता है कि प्रत्येक स्थिति में वह किस प्रकार से क्या अनुभव करेगा और इस बात का उन श्राभ्यंतरिक अनुभवों के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। भिन्न-भिन्न संतों के अनुभवों में पाई जाने वाली विभिन्नताएँ इसी आधार पर समझी जा सकती हैं। फलतः हमारे लिए कुछ ऐसे दृष्टान्तों का भी पा लेना संभव है जिसमें सभी प्रकार के अनुभव रह सकते हैं। किंतु उनका कोई संबंध आध्यात्मिक सिद्धि से नहीं हो सकता। यह बात उस दशा में अवश्य होगी जब ये गुप्त साधनाएँ बिना किसी उद्देश्य विशेष के की जायेंगी और उनके लिए कोई वैसी अन्त:- प्रेरणा भी न होगो जो सभी प्रकार के प्राध्यात्मिक विकास के लिए सर्वस्वरूप है। 4