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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३४७

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धनी (अधिदेव)। क्रम- संख्या चक्र दल वर्ण ध्वनि वक्तव्य व उसको सिद्धि १ ४ २ ३ 5 श्वेत मूलाधार गणेश, ऋद्धि- ... लाल (मूल) सिद्धि स्वाधिष्ठान ६ ब्रह्मा व सावित्री ... (स्वाद) मणिपूर विष्णु व लचमी ... (नाभि ) अनाहत १२ शिव गौरी सोऽहम् ... ... (हृदय) (प्रणव विशुद्ध २ निजमन व ... नीली बंकनाल का पार करना तथा ( कंठ) अविद्या (गरीब) त्रिवेणी के गर्त में उतर पाना । सहस्र कमल १०० निरंजन जोति ... शंखध्वनि शाकिनी, डाकिनी तथा काल - व घटि- दूत भय दिखलाते हैं। किंतु कारव 'सत्तनाम' का उच्चारण उन्हें भगा देता है। त्रिकुटी महाकाल ओंकार मृदंगध्वनि लाल यहाँ पर अमृत का उलटा हुआ वमेघगर्जन सूर्य प्रकाश कुआँ वर्तमान है। ४ चतुथ अध्याय Pero ७ ४ An