पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३४८

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5 w अक्षरब्रह्म रंकार वीणा सारंगी An AM महासुन्न ... पारब्रह्म,१२ अ- चित दक्षिण में, व दसदनसहज बायीं ओर भवर गुफा ... सोऽह पुरुष सोहम् । मुरली सत्य लोक ... हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय सत्य पुरुष वीणा सत्यनाम द्वादश यहाँ पर उस दशम द्वार से सूर्य का होकर प्रवेश होता है जिसे योग शुभ्रप्रकाश में ब्रह्मरंध्र कहते हैं। पाँच अण्ड व पाँच अक्षर ब्रह्म । चार गुप्त स्थान जहाँ पर पुरुष के दर्बार की शासित प्रात्मारा बन्दी रूप में रहती हैं। पसद्वीप जहाँ के महलों में होरा व बहुमूल्य पत्थर जड़े हुए हैं। पुरुष के एक बाल की बराबरी ... लाखों सूर्य व चन्द्र भी नहीं कर सकते। आत्मा यहाँ पर १६ सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर लेती है उसके एक बाल की बराबरी करोड़ों सूर्य भी नहीं कर सकते। उसके एक बाल के सामने अरबों ... सूर्य लजित हो जाते हैं केवल वही उसे जानता है जो वहाँ पहुँच पातय है। १२ अलख लोक ... अलख पुरुष ... ... ... १३ | अगम नोक ... ... 88 अकह लोक ... अनामो पुरुष .... ...