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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३८८

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३०६ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय साधना में योगाभ्यास को भी महत्व दिया था इस कारण इस नवीन विचारधारा से वे बहुत शीघ्र प्रभावित हुए। राघवानन्द बहुत बड़े योगी थे जिनके लिए कहा गया है कि उन्होंने अपने योगबल से रामानन्द की प्राणरक्षा की थी। अतएव इसमें संदेह नहीं कि रामानन्द ने उनसे योग- साधना की भी शिक्षा ग्रहण की होगी । रामानन्द भी स्वयं अपने संप्रदाय में एक महान् योगी के रूप में विख्यात हैं। रामानन्द में आकर इस प्रकार उक्त दोनों प्रकार की विचारधाराओं का संगम हुआ और वे दोनों मिलकर वहाँ से कबीर में पहुंची जहाँ की अन्य मिश्रित धाराओं ने सम्मिलित होकर निर्गुणमत को उसका अंतिम स्वरूप दे डाला । + ज्ञानदेव के परिवार के साथ का उनका सम्बन्ध भी ( यदि वह ऐतिहासिक घटना है तो) उनका योगी होना सिद्ध करता है । ज्ञानदेव का जन्म एक नाथपंथी परिवार में हुआ था। उनके प्रपितामह त्र्यम्बक पंत के लिए प्रसिद्ध है कि वे स्वयं गोरखनाथ के शिष्य थे और उनके पितामह गोविंदपंत के गुरु गहनीनाथ के तथा उनके पिता विट्ठलपंत को स्वयं रामानन्द ने ही दीक्षा दी थी। यह भी संभव है कि रामानन्द एक समाज सुधारक होने के नाते ज्ञानदेव के परिवार के साथ संबंध रखनेवाले मान लिये गये हों। बात यह है कि विट्ठल पंत संन्यास धर्म से च्युत समझे गये थे और हो सकता है कि, इस धार्मिक पतन की व्याख्या के प्रयास में रामानंद के नाम का भी उपयोग किया गया । विठ्ठल पंत जब रामानंद-द्वारा वैराग्य के मार्ग में दीक्षित हुए थे तो रामानंद से किसी समय उनकी पत्नी रुक्माबाई से भेंट हो गई थी। स्वामी रामानंद ने उन्हें कृपापूर्वक अच्छी संतति उत्पन्न होने का आशीर्वाद दिया था और अपने वचन को पूरा करने के लिए उन्हें अपने शिष्यों को पुनः गार्हस्थ्य धर्म स्वीकार करने का आदेश भी देना पड़ा था। बिट्ठल पंत को रामानंद का शिष्य मान लेने में