पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३८९

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पंचम अध्याय पहलो विचारधारा अर्थात् एकांतिक धर्म के अद्वैतो सर्वात्मवाद तथा साकारे भगवान् के प्रति प्रदर्शित प्रेम ने दूसरी धारा अर्थात् बौद्ध धर्म के शब्दयोग गुरु के प्रति अात्मसमर्पण* तथा मध्यम मार्गी के साथ सम्मिलित हो, रामानंद के द्वारा निर्गुणमत में प्रवेश किया।

एक ही कठिनाई कालनिर्णय सम्बन्धी पड़ती है और वह अनतिक्रमणीय वा दुर्लघ्य है। विट्ठलपंत का समय रामानंद से बहुत पहले पड़ता है । रामानंद का जन्म-संवत् रामानंदी लोगों के भी अनुसार ( जिन से उस काल को अधिक से अधिक प्राचीन सिद्ध करने की प्राशा की जा सकती है ) सन् १२६६ ई० है । जहाँ विट्ठलपंत की धर्मच्युति के अनंतर उनके प्रथम पुत्र का जन्म होना लगभग सन् १२६८ ई० वा उससे पाँच वर्ष पीछे सिद्ध होता है (दे० 'ज्ञानदेव वचनामृत' की 'प्रस्तावना' ५० ५ प्रो० आर० डी० रानडे लिखित ) बौद्ध तंत्रपद्धति के अनुसार गुरु इस भूतल पर परमेश्वर का प्रति- निधि माना जाता है । तिब्बतीय लामाधर्म जो बौद्ध धर्म का ही एक परिवर्तित रूप है 'गुरुधर्म' है और लामा शब्द का अर्थ भी गुरु ही होता है। गुरु के लिए यही महत्व हम गोरखनाथियों में भी पाते हैं और वहीं से रामानंद के द्वारा गोरखनाथियों के प्रभाव में कुछ और भी अधिक आ जाने के कारण इसका प्रवेश निर्गुण- मत में भी हो जाता है । हिन्दू भी गुरु के विषय में लगभग उसी भाव के साथ कथन करते हैं किन्तु वे इसे केवल अर्थवाद समझते हैं और योगियों वा निर्गुणियों को भांति उसे शब्दशः नहीं मानते । महायान, योगाचार तथा गोरखनाथपंथ सभी मध्यम मार्ग स्वीकार करते हैं । गोरखनाथी इसके लिए उस बौद्धमत के ही ऋणी है जिससे वे पृथक् हुए थे। गोरखनाथ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है "खाए भी मरिए अनखाए भी मरिए । गोरख कहै पूता संजमिही