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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३९८

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३१६ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय हमें यह बात हेलियोडोरस के संबंध में दीख पड़ती है जो अपने को भागवत कहता है और जिसने ईसा के पूर्व सन् १४० में गरुडध्वज नाम का एक स्तंभ भी निर्मित किया था ।* ऐकांतिक धर्म जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म दोनों से ही पुराना था और ये दोनों ईसाई धर्म से निःसंदेह प्राचीनतर थे। दूसरा मत हमें इस बात को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है कि भारत को स्वयं ऐकांतिक धर्म ही ईसाई धर्म से मिला है । ऐकांतिक धर्म एवं कृष्ण का भो ईसा से प्राचीनतर होना ऊपर दिखलाया जा चुका है, किंतु यह भी तर्क किया जाता है कि फिर श्वेतद्वीप (जहाँ पर नारद मुनि ने महाभारत के अनुसार ऐकांतिक धर्म सीखने के लिए यात्रा की थी ) श्वेतांग मनुष्यों का ही कोई देश रहा होगा। फिर भी महाभारत में दिया गया श्वेतद्वीप का वर्णन ही इस कल्पना की असत्यता सिद्ध कर देता है । ग्रंथ के अनुसार श्वेतद्वीप कोई काल्पनिक प्रदेश है जहाँ के निवासी किसी ऐसी जाति के लोग हैं जो "साधारण पंचेद्रियों से रहित हैं," "जो बिना भोजन के ही जीते हैं, जिन्हें पलक मारने की आवश्यकता नहीं पड़ती और जिनके सिर छाते के समान हैं तथा जिनके चंद्रवत् प्रकाशमान शरीर कर्करा व कठोर हैं,"। मैं नहीं समझता कि पश्चिम में कोई भी ऐसा देश है, कम से कम ईसा के जन्म के परवर्ती पृथ्वी पर रहा है, जहाँ के लोग ऐसे होंगे। मुझे जान पड़ता है कि उक्त प्रदेश प्राध्यात्मिक अनुभूति के उस स्थान का एक रूपक द्वारा निर्देश करता है जहाँ पर मुक्त आत्माओं का निवास है जो किसी साधक के मेरु (अर्थात् सुषुम्नानाडो) तक पहुँचने पर दृष्टिगोचर होने लगता है और जिसके साथ श्वेतवर्ण का भी संबंध स्थापित किया जा सकता है। यदि 9

  • -ल्यूडर्स 'इंस्क्रिप्सन्स ६६६ ( एपी० इंडिका० भा० १० अनु०)

1-'महाभारत' बारहवाँ पर्व (श्लो० १२७७६-१२७८२)।