पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४०७

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पंचम अध्याय ३२५ के लिए पहिले से ही समर्पित कर दिया गया है। भिखारी ने उसमें से केवल एक लोटे भर अन्न माँगा, किंतु उसका पात्र पूरी टोकरी के खाली हो जाने पर भी नहीं भर सका और बेचारी स्त्री को दोनों नारियल तक दे देने पड़े। उसे इस बात का भय हुआ कि कबीर लौटने पर इस बात के लिए उसे झिड़केंगे। परन्तु उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसका घर फिर अन्न से भरपूर हो गया और उसे निश्चय हो गया कि भिखारी स्वयं निरंकार के अतिरिक्त दूसरा कोई न था । वह अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए बाहर आयी, किंतु भिखारी तब तक लँगड़ाता हुश्रा चला गया था। संयोग वश उसे दिये गये दोनों नारियल किसी अपवित्र स्थान पर गिर पड़े थे और वे एक सुअर तथा एक सुअरी के रूपों में परि- णत भी हो गये थे । उसी समय से निरंकार के लिए सुअरों का बलिदान प्रारम्भ हो गया। इस उपाख्यान में हमें स्पष्ट दीख पड़ता है कि यहाँ पर जितनी चिंता एक अनुयायी की अपने मतप्रवर्तक के उपदेशों का अनुसरण करने की नहीं है उतनी हिंदू धर्मावलंबियों में से आये हुए किन्हीं ऐसे कबीर- पंथियों की उत्कंठा है जो जन्म से ही मुसलमान कहलानेवाले व्यक्ति के शिष्य होने के नाते अन्य हिंदुओं-द्वारर मुसलमान समझकर तिरस्कृत किये जाने लगे थे और जो अपने को हिंदू मानने के लिए कोई ऐसा कार्य करना चाहते थे जो मुसलमानों की औचित्य भावना के प्रतिकूल पड़ता हो और यह बात भी केवल इसी कारण थी कि ऐसे लोगों में उस अनु- भूति की कमी थी जिसके द्वारा कबीर ने हिंदुओं व मुसलमानों की वास्तविक एकता को समझाया था । इन संप्रदायों ने केवल हिंदुओं तथा मुसलमानों की वास्तविक एकता को ही नहीं भुलाया प्रत्युत उन सिद्धान्तों को भी विस्मृत कर दिया जिनके आधार पर स्वयं वे सब भी निर्मित हुए थे और इसी कारण वे अनेक भिन्न-भिन्न वर्गों के रूप में गिने जाने लगे। एक ही