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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४५७

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षष्ठ अध्याय ३७५. का प्रयोग सदा एक ही भाव को व्यक्त करने के लिए नहीं किया जाता इस विषय में संतोषजनक बात केवल इतनी ही है कि ऐसी उल्टवासियों द्वारा अधिकतर आध्यात्मिक साधनाओं तथा दार्शनिक सिद्धान्तों का ही वर्णन किया जाता है और हृदय की अभिलाषाओं का व्यक्तीकरण सीधी ‘सादी एवं चुभनेवाली कविताओं के आधार पर हुआ करता है। यद्यपि काव्य की ओर उससे भी अधिक आध्यात्मिक विचारगर्भित काव्य को मर्मज्ञता के लिए कल्पना के कुछ न कुछ सौंदर्य की आवश्यकता पड़ती है। फिर भी समाजोचना की अाधुनिक प्रवृत्ति के विरुद्ध किया गया 'पाइ० ए० रिचार्ड स' का यह कथन आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के क्षेत्र में दीख पड़नेवाली उक्त मनोवृति के विषय में भी लागू हो सकता है कि "जो कुछ हम कहा करते हैं उसमें से प्रायः सभी बातों को भाषा छिपा देने में समर्थ है।" कबीर इस प्रकार की मनोवृत्ति-द्वारा बहुत अधिक प्रभावित जान पड़ते हैं और यहो बात सुन्दरदास में भी लक्षित होती है जिन्होंने अपने 'सुन्दर विलास' का एक पूरा का पूरा अध्याय इन विपर्ययों से भी भर दिया है। कभी-कभी कबीर इस बात का प्रदर्शन करते हुए जान पड़ते हैं कि वे अपने पदों को समझने में अत्यंत कठिन बना सकते हैं। वे सबको इस बात के लिए श्राह्वान तक कर देते हैं कि जो कोई भी उनके कथन के अभिप्राय को समझ सकेगा उसे वे अपना गुरु स्वीकार कर लेंगे । वास्तव में कबीर की उल्टवासियाँ उनके सिद्धान्तों को यथार्थतः समझने में बाधक सिद्ध हुई हैं। स्व० रीवॉनरेश विश्वनाथसिंह ने जो कबीर के सिद्धान्तों के सबसे सफल मर्मज्ञ समझे जाते हैं, उन्हें सबसे अधिक विपरीत समझा है। उस निरपेक्षवादी कबीर की कविताओं को उन्होंने स्थूल व साद्यन्त विषय- 1-आइ० ए० रिचार्ड स 'प्रिंसिपस आफ् लिटरेरी क्रिटिसिज़्म' । पृ० २१ ।