पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४५८

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r हिन्दी काव्य में निगुण संप्रदाय परक अर्थ लगा दिया है जो केवल एक बहुत सूक्ष्म प्रकार की ही सांद्यतता को प्रश्रय दे सकता था। कबीर को अनेक बानियाँ अाज भी बोधगम्य नहीं हैं किंतु कुछ लोगों की भाँति यह कह देना कि वे किसी अभिप्राय को व्यक्त करने के लिए नहीं लिखी गई थीं, नितांत मिथ्या है। -