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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४५९

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परिशिष्ट (१) पारिभाषिक शब्दावली नीचे उन सांकेतिक शब्दों का एक कोष दिया जाता है जिन्हें निर्गुण मत वाले संत अपने भिन्न-भिन्न भावों को व्यक्त करते समय बहुधा प्रयोग में लाते हैं । इससे पता चलेगा कि एक ही सांकेतिक शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न स्थलों पर भिन्न-भिन्न भावों के लिए हुआ करता है । ऐसे स्थलों पर केवल प्रसंग से ही जान पड़ता है कि अमुक शब्द का प्रयोग वहाँ अमुक बात को स्पष्ट करने के लिए हुआ है। गरीबदास का "भवन प्रबोध ग्रंथ' इस सूची को तैयार करते समय बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। ॐ --शब्द, पवन, सास, जीव, सबद, सुर, सूर, उजास, ससा, संष, सेसदम, नाद, स्यंघ, व स्याल । अंतःकरण-कमल, घड़ा, कलस, गगन, आँगणा, ताखा व कुत्रा। अजपाजाप-उस प्रकार को उपासना की पद्धति व स्थिति जिसमें सभी प्रकार के वाह्य साधनों के प्रयोग छोड़ दिये जाते हैं और एक अंत:क्रिया मात्र चलती रहती है आत्मा-बादशाह, हंस, अवधूत, अर्जुन, महर, गूजर, प्रजापति, सुलतान, राजा, साह, काजी, खग, सती, विरहिनी, वैरागिनी, वियो- गिनी, बाँझ, सुन्दरी, दुलहिनी, रूह, अरवाह, बेली, अंजनी ।