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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४६०

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, , हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय इंद्रो --पांडव, पाँच लड़िका । इडा--योमनाड़ी जो नाक की बायीं ओर पाकर समाप्त होती है, चन्द्रमा, इला, गंगा, वरणा । इच्छा--मनसा, गायत्री, सुरही, (सुरभि-गाय ) वच्छो, तरंग, जमुना, मृगछी (मृगाक्षो), माखी, मूंगी, देवी, सक्ती, डीबो, जोगनी, मानी, माजिन, कलाली, गौरी, पारवती, दामिनी, तृया, मौरी, मंजारी, बगुली, चावंड, ( चामुन्डा ), चील, चौट्टी उनमनि--तन्मनस्कता, वहमन, अतिचेतना । ऊँट-स्वाँसा ( श्वास) कम्मल-कर्म, कामनापूर्ण कार्य । कुआँ -अंत:करण (ौधा कुत्राँ) त्रिकुटो वा अाकाश में स्थित अमृतकूप । गुरु -सिकलीगर, साह, सुनार, चन्दन, चिंतामणि, पारस, भृङ्गों, वैद्य, हंस, पारिष । चित- चातृग, ( चातक ) चकोर, चकवा, चक्र, चिड़ा (चिड़िया.) चोर, चूल्हा, चक्को, चरखा। चन्द्रमा - इलानाड़ी, अाज्ञाचक्र में स्थित अमृतस्रावक चंद्र, ज्ञान, पुरुष। जरणा--- जीर्ण करना, पचाना, किसी धारणा को श्रात्मसात् कर लेना। जीव-प्राण. पातशाह, अर्जुन, अवधून, जोगी प्रषित, हंस, महर, राजा, शाह. काजी, खग, अट, कुष्टी, कंज, विरहिनी, बाँझ, सुन्दरी, दुलहिन, रूह, अरवाह, वेली, अंजनी । तेंतीस करोड़ देवता-३ गुण (सत, रज और तम ) ५ तस्व (जल, वायु, श्राकाश, अग्नि, पृथ्वी) और २५ प्रकृति । तेल- भगवत्प्रेम, जीवन विस्तार, स्नेह । दीपक-शरीर, ज्ञान ।..