पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४६१

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परिशिष्ट १ दुलहिन- सुरति, जीव, माया। दुविधा -दुर्मति, द्रौपदी, कुदाली, कागली, कुहू (अमावस्या ) कसाइण माया ( दे० 'माया' भी)। ध्यान -वितवन, तालो, धागा, त्राटक, निंद्रा, समाधि । निरति-परमात्मा के साक्षात्कार का आनन्द ( नृत्य ), पूर्ण तन्मयता। परचा-परिचय, परमात्मा का साक्षात्कार । परमात्मा-अविहड़, अनाहद, दरिया, सागर, रमिताराम, रमैया, मूल, प्रीतम, सम्पति, कारीगर, कुम्हार । परमात्मा के नाम अनन्त हैं। पिंगला--जमुना, असी, सूर्य, वायीं, नाड़ी में मिलनेवाली योगनाड़ी। बाणी-गंगा, भागीरथी, शारदा, सुरसरी । वाती-प्राण, उन्मेष की प्रवृत्ति । बंकनालि-सुषुम्ना (पूर्ववर्ती संतों के अनुसार ); त्रिकुटी के आगे का एक सूक्ष्म मार्ग जिसमें ऊँचे पर्वत व नीची घाटियाँ बतलायी जाती हैं ( परवर्ती संतों के अनुसार)। मन-मनि, मृग, मेंढक, मंजार, मूसा, मर्कट, मोतीहार, मोर, गरुड़, हाथी, पशु, पतिंगा, सुनहा, सूका, कउवा, महादेव, अवधूत, देव रावल, कउवा, बगुला, बाज, काइय, जोगी, लूटा, बँधुवा भँवरा, भोमी, फटक ( स्फटिक ) धौन (धवन), कलाल, रिंद, सैतान, बकरी, सेहू । मानसरोबर-सुन्न में स्थित अमृतकुण्ड । माया - मैणी, मोहनी, मजारी, मगर, डंकिणो, संकणी, साँपणी, पापणी, जापिनी, कामिनी, भामिनी कोढणी । मूल--परमात्मा, मूलाधारचक्र, भूलप्रकृति । बिंदु--सुकल, जलन्धर, व्यंद, पाणी, वीर्य, व विंदुस्थान । वैराग्य - विरह, फिराक, प्यास, तपति, औचट, तड़फ, तालाबेली, उदास, फिकर।