पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४६२

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, हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय विसाहणा--क्रय-विक्रय, आवागमन । शब्द-गुरु की शिक्षा, सिचाण, पतोला, कुंची, वाण, मस्क, निर्भय- बांणी, अनहद वाणी, शब्दब्रह्म, परमात्मा । शका - ससा, स्यंक, स्याल, मूसा, साँप, कुत्ता, दुविधा, माया । शरीर-पिंड, घट, श्राकार, वन, पृथ्वी, समुद्र, बंककूम, मोम, पाड़, गोकुल, व्यंदावन, वेलि, बबूलनी, पुतला, कील, अस्थूल, ौजूद, देहुरा, महल, मसीत, व्यावर, परिवार, चादर । संसार-समुद्र, भौ, वन, वाड़ी, माँड़, जंजाल, मृग, वृक्ष, चाक ( चौरासी लाख योनि) हाट. आवागमन । सुमिरण--जाप, डोरी, ताँत, लौ, धूरि, वजन । सुखमन--सुषुम्ना, सरस्वती, बंकनाली। सुरति--जीव, सीप, सुन्दरो, सरस्वती, सखी, कुदाली, श्रुक, चेत, मछली, जीव । सूरज -पिंगलानाड़ो, मूलाधार में स्थित विषप्रस्रावक सूर्य । ज्ञान-चाँदणि, तत्त, उजास, सूरज, चन्द्रमा। हाट--हह, संसार। .