पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४६३

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परिशिष्ट (२) निर्गुण संप्रदाय सम्बन्धो पुस्तकें निर्गुण संतमत का अध्ययन करने के लिए सबसे पहले उन संतों की प्रामाणिक रचनाओं का पढ़ना आवश्यक है जिन्होंने इसे प्रचलित किया था। किंतु यह भी कोई सरल काम नहीं है १, संत साहित्य और विशेषकर उन संतों की कृतियों का अध्ययन जो पहले हो चुके हैं। इन संतों के कतिपय श्रद्धालु भक्तों ने अपने गुरुओं के सिद्धान्तों को अधिक स्पष्ट करने के उद्देश्य से कुछ ऐसे पद्यों की रचना कर डाली है जो इनके ही कहलाकर प्रसिद्ध हो चले हैं और ऐसा करना उन्होंने कदाचित् अपना अधिकार समझा है। अन्य ऐसे व्यक्तियों ने अपने गुरुओं की कृतियों में या तो क्षेपक भर दिये हैं अथवा इनके ही नामों से नितांत नवीन सामग्री तयार कर इनके प्रति भक्ति प्रदर्शन की जगह किसी अपने उद्देश्य की सिद्धि की है । मूल गुरुत्रों के सिद्धान्तों पर आश्रित संप्रदायों का रंग शीघ्रता से बदलता आता रहा है और नवीन परिस्थिति के अनुकूल प्रमाणों की रचना भी उन्हीं के नामों पर होती आई है। अतएव कभी-कभी प्रसिद्ध बानियों में से प्रामाणिक पदों को पृथक् कर लेना एक अत्यंत कठिन काम हो गया है। यह बात विशेषकर कबीर के सम्बन्ध में देखी जाती है जो पूर्ण रूप से प्रशिक्षित थे और जिन्होंने कभी लेखनी उठायी ही नहीं थी।