. २८२ हिन्दी काव्य में निगंगा संप्रदाय कहा जाता है कि जो कुछ वे कहते थे उसे अनेक अनुयायी लिख लिया करते थे। उनकी मृत्यु के अनंतर ऐसे शिष्यों व इनके भी अनु- यायियों ने उनके नाम से बहुत कुछ लिख मारा। उनके उपदेश इसी कारण ऐसे लोगों की कृतियों के साथ इस प्रकार मिल गये हैं कि उन्हें पृथक् नहीं किया जा सकता। कबीर का अध्ययन करने के लिए बाबू क्षितिमोहन सेन द्वारा संपादित कबीर बानियों का बोलपुरवाला संग्रह ( चार भाग ) और उसी प्रकार उनका वेलवेडियर प्रेसवाला संस्करण जिसके चार भागों में उनकी शब्दावली, साखी संग्रह, ज्ञानगूदरी, रेखते, झूलने व अखरावती सम्मिलित हैं तथा श्री वेंकटेश्वर प्रेस द्वारा प्रकाशित साखियों का संस्करण • बहुत उपयोगी हैं परन्तु इनके संग्रहकर्ताओं ने इस बात का प्रयत्न नहीं किया है कि कबीर की प्रकाशित रचनाओं में से दूसरों की कृतियों को पृथक् कर लें इस कारण इनमें अनेक ऐसो बानियाँ आ गई हैं जो कबीर की नहीं हो सकतीं। कबीर के एक सौ पदों का डा. रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा किया गया अनुवाद क्षिति बाबू के उपर्युक्त संस्करण के आधार पर निकला है तथा पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय का 'कबीर वचनावली', नामक छोटा सा संग्रह उक्त वेलवेडियर प्रेसवाले संस्करण के अाधार पर तैयार होकर काशी नागरी प्रचारिणो सभा, की शोर से प्रकाशित हुआ है और अपने ढंग का अच्छा है। सिक्खों के आदि ग्रंथ में संगृहीत कबीर की रचनाओं का संग्रह बड़ी सावधानी के साथ किया गया जान पड़ता है। किंतु कबीर के दंडित होने के सम्बन्ध में उनकी ओर से प्रदर्शित चमत्कारों का उनमें सम्मिलित कर लिया जाना, स्पष्ट रूप में सिद्ध कर देना है कि यह संग्रह भी संदिग्ध बातों से मुक्त नहीं। बीजक प्रायः सभी कबीरपंथियों के अनुसार कबीर की प्रामाणिक रचना माना जाता है किंतु वह भी पूर्ण रूप से प्रामाणिक नहीं समझ पड़ता । उसमें ऐसे पद्य श्रा गये हैं जिनका दूसरों को कृति होना निश्चित रूप से बतलाया जा सकता है। उदाहरण के लिए 'बीजक' का "संतों राह दुनों हम दीठा' से प्रारम्भ होनेवाला .
पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४६४
दिखावट