पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४७२

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. .. हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय इसके द्वारा 'कबीर ग्रंथावली' को पूर्णतः प्रामाणिक मान लेने में भय भी उपस्थित हो जाता है । इसलिए 'कबीर ग्रन्थावली' 'आदिग्रन्थ' एवं बीजक को मैंने अधिक विश्वसनीय मानते हुए भी उनकी ऐसी कोई भी रचना स्वीकार नहीं की है जिसमें या तो सांप्रदायिकता की गन्ध पाती है या जो उनके रचयिता के सम्बन्ध में किन्हीं असम्भव बातों का उल्लेख करती है। इसके साथ ही मैंने उपर्युक्त अन्य ग्रन्थों की भी पूर्णत: उपेक्षा नहीं की है और मैंने उनसे ऐसे पद्यों को उद्धृत भी कर दिया है जो इन तीनों ग्रन्थों में स्वोकृत बातों के विरुद्ध नहीं पड़ते। जो पद्य इन तीनों ही ग्रंथों में आये हैं उनके पाठों को मैंने असांप्रदायिकता एवं पुरानी शैली के विचार से, 'ग्रंथावली' तथा 'श्रादिग्रंथ' के ही अनुसार ठीक माना है। उन पद्यों के सिवाय जो कबीर की बानियों में मिल गये हैं कुछ ऐसी भी रचनाएँ चल पड़ी हैं जिनमें से बहुत सी तो कबीर-कृत कह-' नाना चाहती हैं और अन्य अनेक ऐसी हैं जो उस प्रकार न कहलाकर भी कबीर की कृति होने का भ्रम उत्पन्न कर सकती हैं। कबीर के भिन्न-भिन्न जीवनचरित्रों में दो गई उनकी पुस्तकों की सूची में ऐसे बहुत से ग्रन्थों के नाम दिये गये मिलते हैं। ऐसे ४० ग्रंथों को एकत्रित करके कबीर-पंथी साधु युगलानन्द के सम्पादकत्व में, ११ भागों का एक 'कबोरसागर' जो एक दूसरे नाम से 'बोध-सागर' भी कहलाता है, बम्बई के श्री वेङ्कटेश्वर तथा लक्ष्मी वेङ्कटेश्वर प्रेस-द्वारा प्रकाशित किया गया है। इन ४० ग्रंथों में से केवल 'श्रात्म बोध' (भा० ६) अंशतः उस रेखता का प्रतिनिधित्व करता है जो वेलवेडियर प्रेस' से प्रकाशित है और जिसे कबीर कृत माना जा सकता है। इसमें दिये गये कबीर के सिद्धांत 'ग्रन्थावली' एवं 'ग्रन्थ' के अनुकूल पड़ते हैं और 'रेखता' की खड़ी बोली भाषा के कारण भी इसका कबीर-कृत होना असम्भव नहीं है। किन्तु यह भी सम्भव है कि इसका रचयिता कबीर न होकर