पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४७३

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परिशिष्ट २ ३६१ 1 मनोहरदास हो । इस ग्रन्थ के कई स्थलों पर 'दासमनोहर' शब्द का प्रयोग दीख पड़ता है। इसमें सन्देह नहीं कि उक्त प्रयोग भौतिक मन के लिए किया गया है । फिर भी इसके विरुद्ध भी कोई कारण नहीं कि यह र चयिता का नाम होकर ही प्रयुक्त हुअा है । शेष ३६ रचनाओं में से एक भी कबीर की नहीं और यह उनके विषय से ही प्रकट है । 'अनुराग सागर' ( भा० २ ) ज्ञानसागर' (. भा० १ ) 'अम्बुसागर' ( भा० ३) 'स्वसम्वेदबोध' ( भा० ६ ) 'निरंजन बोध' ( भा० ७ ) 'ज्ञानस्थिति बोध' (भा० ८ ) 'सर्वज्ञ- सागर' ( भा० ३ ) एक प्रकार के 'कबीर जातक' वा कबीर के अवतार- धारण की कथाएँ हैं। इन कथाओं में एक ऐसे सष्टिक्रम का वर्णन है जो दार्शनिकता व पौराणिकता से भरा हुआ है और इसके अनुसार कबीर ज्ञानी कहे गये हैं तथा उन्हें श्रादि पुरुष के अनेक ( कुछ पुस्तकों के अनुसार ५ और दूसरों के अनुसार १६ ) पुत्रों में से एक एवं निरं- जन का भाई माना गया है। इस निरंजन को वंचक समझा गया यह अपने पिता को इस बात में ठग लेता है कि वह इसे सप्तलोक, मानसरोवर, तथा श्रादि माया (अष्टाङ्गी भवानी ) दे दे और अपने मनोविकारों के श्रावेश में श्राकर श्रादि माया को यह निगल भी जाता है। तदनंतर श्रादिमाया उसके पेट को चीरकर बाहर निकल पाती है और इसकी बातों में आकर इससे व्याह कर लेती है जिससे ब्रह्मा, विष्णु, व महेश नामक तीन पुत्रों की उत्पत्ति होती है । तब ये तीनों लड़के अपने जन्म के पहले से ही गुप्त हो गये हुए पिता की खोज में निकलते हैं । ब्रह्मा लौटकर असत्य बोलता है कि मैंने अपने पिता को देखा है जिसपर रुष्ट होकर श्राद्या उसे शाप देती है कि तुम्हारी न तो कोई पूजा होगी और न तुम्हें कोई भेंट अर्पित की जायगी और तुम्हारी संतान ब्राह्मण, भी धूर्त हुश्रा करेंगे। विष्णु भी अपने प्रयत्नों में असफल हुश्रा और निम्न लोकों में जल- कर काला पड़ गया। उसने अपनी असफलता स्वीकार कर ली जिसके