. ४०४ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय नहीं जिनका आश्रय लिया जा सके। इस सम्बन्ध में भी कबीर की ही चर्चा अधिक मिलेगी। नाभाजी ने इन पर छः पंक्तियों ४. जीवन-चरित का एक पद्य लिखा है । प्रियादास ने इनके विषय में संबंधी साहित्य अनेक उपाख्यान संग्रह किये हैं । कबीर-पंथी विचार- धारा जहनासिंह की 'कबीर कसौटी', परमानंद के 'कबीर मन्सूर' और 'कबीर सागर' की कतिपय रचनाओं, विशेषकर 'कबीर चरित्र बोध', में पायी जा सकती है। विशप वेस्टकाट ने इनके चीवन-चरित के सम्बन्ध में अनेक महत्वपूर्ण बातें छेड़ दी हैं जिनसे सभी सहमत नहीं हो सकते । डा० के ने ऐतिहासिक कबीर व पौराणिक कबीर के बीच अन्तर दिखलाने की गम्भीर चेष्टा की है । नानक व कबीर के पूर्ववर्तियों के विषय में मेकालिफ ने अपनी रचना 'सिखिड़म', के क्रमशः प्रथम व षष्ठ भागों द्वारा बहुमूल्य सहायता प्रदान की है। हिंदी-सम्बन्धी खोज के क्षेत्र में काम करने वालों के पथ-प्रदर्शक मिश्र- बन्धुओं का 'विनोद' ग्रन्थ ऐसा है जिसे सभी को देखना पड़ता है। विल्सन का 'रेलिजस सेक्ट स श्राफ दि हिंदूज' 'संतबानी ग्रन्थ माला' के विभिन्न भागों की भूमिकाएँ तथा शिवव्रतलाल के 'सुरति शब्द योग कल्पद्र म' की भूमिका प्रधान सामग्रियाँ हैं जिन पर इन संतों के जीवन- चरित आश्रित रखे जाते हैं। प्राणनाथ की जीवन चरित-सम्बन्धी बातों के लिए मैं नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्टों का ऋणी हूँ।
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