परिशिष्ट (३) विशेष बातें पृष्ठ १६ पंक्ति ७ । हिंदू-मुस्लिम एकता के साधरु गोरखनाथ- महान् योगी गोरखनाथ का प्राविर्भाव ईसा की दसवीं शताब्दी के पूर्व ही हो गया जान पड़ता है । उन्होंने मुस्लिम काजी को यह बात समझा देने की भरपूर चेष्टा की कि जिस तलवार का प्रयोग मुहम्मद ने किया था वह लोहे वा इस्पात की नहीं बनी थी, अपितु आध्यात्मिक प्रेम वा, शब्द की बनी थी + । हिमालय पर प्रचलित जादू के एक मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि इस तपस्वी संत ने हिंदुओं तथा मुसलमानों अर्थात् दोनों को ही शिष्य बनाया था। बाबा रतन हाजी जिन्हें मुस्लिम परंपरानुसार गूगा (लगभग १००० ई० ) का गुरु माना जाता है गोरखनाथ के अनुयायी अथवा संभवतः उनके मुस्लिम शिष्य जान +-महमद महमद न कर काजी, महमद का विषय विचारं । महमद हाथ करद जे होती, लोहे गढ़ी न सारं ॥ सबद मारै सबद जिलावै । जोगेश्वरी साखी ।
- -हिंदू मुसलमान बाल गुदाई दोऊ सहरथ लिए लगाई ।
'रखवाली' मंत्र जो भूतों को हमसे दूर ही रखकर हमारी उनसे रक्षा भी करते हैं