पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४८८

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४०६ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय पड़ते हैं । प्रसिद्ध है कि वे मोहमंद नामक पर्वत पर निवास करते थे। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने कई मुसलमानों को योगमत में धर्मातरित किया था। काबुल के योगी आज भी रतनहाजी के फकीर कहे जाते हैं ।। रतनहाजी ने ही कदाचित् 'काफिर बोध' की रचना की थी जिसे कुछ लोग गोरखनाथ की और कबीर की कृति समझते हैं। 'अवलि सलूक' भी संभवतः उन्हीं की लिखी पुस्तक है। उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए किसी मुहम्मद नामधारी बादशाह से अनुरोध किया था। पृष्ठ २६ पंक्ति ६ | आनन्दभाष्य-मुझे विदित हुआ है कि इस ग्रंथ को स्वामी रामानंद की असली रचना मान लेना असंदिग्ध नहीं कहा जा सकता। पृष्ठ ६७ को २०-२३ पंक्तियाँ। कबीर ने कहा है कि "कलियुग में कलमा के प्रचारक" मुहम्मद को “ईश्वरीय शक्ति वा माया का ज्ञान नहीं था।" पृष्ठ १०६ पंक्ति ३ । कबीर ने ईश्वर को तीनों लोकों से परे होना एकसे अधिक स्थलों पर बतलाया है *। बिहार के दरिया ने भी यही कहा है+। कबीर ने ईश्वर को तीन पदों से अतिरिक्त चौथा +-गोरक्ष तत्वज्ञानदर्श, पृ० १८६ । x-जिन कलमा कलि माहिं पढ़ाया ( पठाया )। कुदरत खोज तिनहुँ नहिं पाया ॥ कबीर ग्रंथावली, पृ० २८८; 'बीजक' ( रमैनी ३६)। -कहै कबीर तिहुरे लोक विवरजित, ऐसा तत्त अनूपं । क० ० ( १६३-२२० ) +-तीन लोक के ऊपरे अभय लोक विस्तार । सत्त सुकृत परवाना पावै पहुँचे जाय करार ।। संतबानी संग्रह, भा० १, पृ० १२३ ।