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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४८९

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परिशिष्ट ३ भी कहा है और यही भावना नीचे उद्धृत पंक्तियों में भी व्यक्त होती है । कहै कबीर हमारै गोब्यंद । चौथे पद में जन को ज्यंद ॥ पृष्ठ १०६ प्रक्ति १४ । भँवरगुफा-कबीर ने स्वयं कहा है कि भीतर के कमल ( हृदय) में ब्रह्म का निवास है जिसमें मन ( अपनी: भौतिक प्रवृत्ति का परित्याग कर ) अनुरक्त हो जाता है । । जोगमंजरी के अनुसार, जो कदाचित् किसी सहजानन्द जोगी की रचना है, भंवर गुफा ब्रह्मरंध्र का हो पर्याय है । जिसकी पुष्टि निर्गुणियों द्वारा भी होती हुई जान पड़ती है। योगमत में 'सुन्न' का भी प्रयोग ब्रह्मरंध्र के लिए होता है। -राजस तामस सातिग तीन्यं , ये सब तेरी माया । चौथ पद को जे जन चीन्हें तिनहिं परम पद पाया ।। क० ग्रं०, (१५०-१४८ ) । x-देखिये, क० ० पृ०, ( २१०-३६५ ) । तीन सनेही बहु मिलें, चौथे मिले न कोय । सबै पियारे राम के, बैठे परबस होय ।। वही (६७-६ )। 1-अंतरि कँवल प्रकासिथा, ब्रह्मवास तहँ होइ । मन भँवरा तहँ लुबधिया, जारणेगा जन कोइ ।। वही (१२७ ) । वंकनालि के अंतरे, पच्छिम दिसा के बाट । नीझर झर रस पीजिए, तहाँ भँवर गफा के घाट ।। वही ( ८८,४)।

--अब ब्रह्मरंध्र ब्रह्म को धामा । भ्रमर गुफा है ताको नामा ॥

जहाँ सहसदल कमल ध्यावै । नासा आगे दृष्टि रहावै ।। 'जोगमंजरी' भा० ३ ( मेरी हस्तलिखित प्रति, पृ० १६४)।