पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/५०४

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४२२ हिन्दी काव्यं में निर्गुण संप्रदाय जैसा मैंने पहले हो कहा है अजपा जाप को भी निर्गुणी लोगों ने गोरखनाथ से ही पाया है। गोरखपद्धति (शतक ) की ईन पंक्तियों द्वारा यह प्रमाणित हो जायगा- "श्वास हकार के द्वारा कहर जाता है और सकार के द्वारा भीतर पाया करता है । इस प्रकार जीव 'हंस' का जप सदा करता रहता है । यह 'अजपागायत्री योगी को मुक्ति प्रदान करती है और इसके लिए केवल दृढ़प्रतिज्ञ हो जाने से ही सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके समान न तो कोई विद्या है, न जप है, न ज्ञान है और न तो ऐसा कभी था न हो सकेगा । कबीर ने तो योगियों के इस विश्वास को भी दुहराया है कि एक दिन में मनुष्य २१६०० . बार श्वास लिया करता है (दे० 'कबीर ग्रंथावली' पृ० १०६ पद ६०१)। पृष्ठ २३२ पंक्ति १८ । सहस्रार - जो बुद्ध को मूर्तियों में दोना पड़ता है-बुद्ध की मूर्तियों में लक्षित होनेवाली केशराशि गुप्तकालीन मूर्ति- कला की विशेषता मानी जाती है। परन्तु यह कार्ली की चैत्य गुफा के द्वारमंडप की पिछली दीवार पर निर्मित उन उभारों पर भी दीख पड़ती है जिसके कुछ अंशों का निर्माण-काल ईसा को प्रथम शताब्दी मानी जाती है और इसके लिए कोई कारण नहीं कि उनका शेष अंश भी उसी समय का क्यों न समझ लिया जाय ? इस विषय में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि भिन्न-भिन्न काल को विशेषताओं के -

  • -हकारेण वहिर्याति, सकारेण विशेत्पुनः ।

हंसहंसेत्यम मंत्रं जीवो जपति सर्वदा ॥ अजपा नाम गायत्री, योगिनां मोक्षदायिनी । अस्याः संकल्प मात्रेण सर्व पापैः प्रमुच्यते ।। अनया सदृशी विद्या अनया सदृशो जपः । अनया सदृशं ज्ञानं न भूत न भविष्यति ॥ पृष्ठ २२-३ ( श्लोक ४२, ४४-५ )।