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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/५०७

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परिशिष्ट ३ ४२५ पृष्ठ २५२ पंक्ति ५ । बुल्ला ने नीचे उन सभी अभ्यासों की चर्चा संक्षेप में कर दी है जो निर्गुणी लोगों की साधनाओं के रूप में प्रसिद्ध हैं । "प्रात्मा को त्रिकुटी (भ्र मध्यदृष्टि) द्वारा देखो। सुषुम्ना-द्वारा जप (अजपाजाप करो। श्वास प्रश्वास को क्रिया इंगला एवं पिंगला के द्वारा चलती रहने दो (प्राणायाम )। इसी प्रकार साधक दसवें द्वार में प्रवेश कर पावेगा।x" पृष्ट २५७ पंक्ति १७ । बिहार के दरिया ने भी मुक्तावस्था की चर्चा दृष्टि उलटि लागो रहै सोऽहं ठाकुर भूप । म० बा० पृ० १८५ (गुलाल) जौ पै कोऊ उलटि निहारै आप...... निरखि निरखि अंतर लै लामो बिन माला को जाप । दसों दिसा में जोति जगामग, वाको तात न मात ।। वही, पृ० ३३ (गुलाल) नयन से देख उलट ठाकु र दर्बारा । वही, भीखा पृ० ८८। स्वास की पास में प्राणका बास हैं, प्राण की आस में बसत साई। रहत दिन रनि सों नयन देखियत, चंद्र को बिंब ज्यों चंद्र माहीं।। वही, केसोदास पृ० ४५३ । जो कछ, इन नयनन लखि पाई, सो सब माया लखब कहाई । दिव्य दृष्टि करि उलटि समाई, लव अलेख लख तिन पाई ।। वही, गुलाल पृ० १६५। -त्रिकुटी द्वारा देख आपू । सुखमन द्वारा सुमिरै जापू ॥ इंगला पिंगला पावै जाय, दसवै द्वारा रहैं समाय ।। वही, पृ० (१८-४२) .