( २५ ) की अवधि के भीतर उनकी प्रत्यक्ष रहनी में पायी गई होंगी। परन्तु उनके विवरण अलभ्य हैं। ये संत अधिकतर सर्वसाधारण के समाजां में ही रहा करते थे और सदा गार्हस्थ्य जीवन व्यतीत करते थे। इनके निकट ऐसे लोगों की उतनी पहुँच नहीं थी जो आर्थिक, राजनी. तिक वा ठेठ सामाजिक दृष्टियों से उच्चश्रेणी के समझे जाते थे और जिनके अर्क में आने पर ही, इनके व्यक्तित्व की विशेषताओं का प्रचारक संभव हो सकता था। इनके व्यक्तिगत प्रभाव का क्षेत्र बहुधा के शिष्यसमुदाय तक ही सीमित रहा करता था जो इनके महत्व का मूल्यांकन, अंधभक्ति के आवेश में भी कर सकते थे । इन संतों के जीवनवृत्तों का ऐतिहासिक रूप हमें इन्हीं कारणों से बहुत कम उपलब्ध होता है । जो कुछ विवरए हमें आज तक मिले हैं उनका अधिकांश या तो चमत्कारों से भरा है अथवा पौराणिक गाथाओं का संग्रहमात्र बन गया है। ऐसे प्रसंगों वा जीवनियों में अधिकतर उन्हीं बातों की चर्चा की गई मिलती है जो इन संतों को एक अलौकिक व्यक्तित्व प्रदान करती हैं। उनमें वैसी बातों का प्रायः अभाव सा ही दीख पड़ता है जो कथनी एवं करनी में पूर्ण सामंजस्य प्रतिष्ठित करनेवाले सत्यनिष्ठ महापुरुषों के दैनिक जीवन की प्रत्येक साधारएं सी चेष्टा में भी लक्षित हो सकती हैं और जो वास्तव में इन संतों की विशेषताएँ कही जा सकती हैं। डॉ० बड़थ्वाल न इन संतों का जीवन-परिचय शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टि से देने की चेष्टा की है और वह इसी कारण स्वभावतः संक्षिप्त एवं अपूर्ण है जिससे इनके व्यक्तित्व पर कोई महत्वपूर्ण प्रकाश नहीं पड़ता । वहुत से संतों के सम्बन्ध में तो उन्होंने अपने अनुमान से ही अधिक सहायता ली है और कहीं-कहीं उपलब्ध सामग्रियों का उल्लेख मात्र कर दिया है । काशी की 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' के पंद्रहवें भाग में अपने इस अंग्रेजी निबन्ध के कुछ अंशों का हिन्दी अनुवाद .
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