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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/७२

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के स्रोत कभी बहिर्मुखी और कभी अंतर्मुखी वृत्तियों में लक्षित होते आ रहे थे और कभी-कभी इन दोनों के बीच व्यापक सामंजस्य लाने के भी प्रयत्न होते रहते थे। संतों के पूर्ववर्ती सुधारकों ने अंतर्मुखी वृत्ति को ही अधिक प्रश्रय दिया, किंतु ऐसा करते समय उन्होंने रूढ़िवादिता से अधिक विचार-स्वातंत्र्य को ही अपनाया। फिर भी उनका झुकाव निवृत्ति मार्ग की ओर ही अधिक रहता आया था और प्रवृत्ति मार्ग को भी उचित महत्व देकर दोनों में सामंजस्य लाने की चेष्टा अभी तक नहीं की गई थी। कबीर आदि संतों ने, चरित्रनिर्माण एवं सदाचरए के आदर्श उपस्थित कर, इस कार्य को भी पूर्ण करना चाहा और इस बात का संभव होना सिद्ध कर दिया कि व्यक्तिगत जीवन के ही सुधार पर, सामाजिक जीवन का भी सुधार निर्भर है तथा स्वर्ग का निर्माण भी वस्तुतः भूतल पर ही हुआ करता है। संतों तथा उनकी रचनाओं के अध्ययन का प्रारम्भ अव इस प्रकार का उद्देश्य लेकर भी हो चुका है और सम्भव है. कि इस अोर पूरी सफलता भी मिल सकेगी। डा. बड़थ्वाल ने इस क्षेत्र में काम करने वालों के लिए एक साहसी पथ-पदर्शक का काम किया है । संत-साहित्य के गम्भीर अध्ययन का कार्य उन्होंने कदाचित् सबसे पहले प्रारम्भ किया था और अपनी लगन व अध्यवसाय के बलपर, उसे बहुत दूर तक सफल करके भी दिखला दिया था । संतसाहित्य की अभी कल तक उपेक्षित समझी जानेवाली रचनाओं को उन्होंने उचित महत्त्व प्रदान करने की चेष्टा की है, संतों की दार्शनिक विचारधारा की गम्भीरता की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है और उनकी सांप्रदायिक साधना के गूढ़ रहस्यों तक को सबके लिए सुलभ कर देने के प्रयत्न किये हैं । उन्होंने अपने अध्ययन व विवेचन के द्वारा इतना पूर्ण रूप से सिद्ध कर दिया है कि इन संतों ने भी, अपनी रचनाओं के माध्यम से मानव समाज के लिए बहुमूल्य संदेश देने का प्रयास किया था और इस कारण हिन्दी माहित्य