पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/९७

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पहला अध्याय १५ मुसलमान के लिये एक अल्लाह को छोड़कर, मुहम्मद जिसका रसूल है, किसी दूसरे के सामने सिर झुकाना कुक्कू था, और कुक के अपराधी कातिर की हत्या करना धार्मिक दृष्टि से अभिनंदनीय समझा जाता था, यहाँ तक कि हत्यारे को गाजी की उपाधि दी जाती थी। इस सम्मान के लिए प्रत्येक अहले-इस्लाम लालायित रहता रहा होगा । अतएव कोई आश्चर्य नहीं कि हिंदुओं पर मुसलमानों का अत्याचार उतार पर न था और न मुसलमानों के प्रति हिंदुओं की ही वह “घोर घृणा" कम हो रही थी, जिसके अल-वेरूनी को दर्शन हुए थे। इस प्रकार इन दो जातियों के बीच द्वेष का विस्तीर्ण समुद्र था जिसे पार करना अभी शेष था । सौभाग्य से दोनों जातियों में ऐसे भी महामना थे, जिनको यह अवस्था शोचनीय प्रतीत हुई। वे इस बात का अनुभव करते थे कि न तो मुसलमान इस देश से बाहर खदेड़े जा सकते हैं और न धर्म-परिवर्तन अथवा हत्या से हिंदुओं की इतिश्री ही की जा सकती है । उस समय की यही स्पष्ट आवश्यकता थी कि हिंदू और मुसलमान अड़ोसी-पड़ोसी की भाँति रेम और शांति से रहें और इन उदारचेताओं को भी इस आवश्यकता का स्पष्ट अनुभव हुा । दोनों जातियों के दूरदर्शी विरक्त महात्माओं को, जिन्हें जातीय पक्षपात छू नहीं गया था, जिनको दृष्टि तत्काल के हानि-लाभ सुख-दुख और हर्ष-विषाद के परे जा सकती थी, इस आवश्यकता का सबसे तीव्र अनुभव हुआ। प्रसिद्ध योगिराज गुरु गोरखनाथx ने-जिनका समय दसवीं शताब्दी के लगभग ठहरता है- में प्रतिपादित बलात्कार का निषेध करनेवाले उस दिव्य सिद्धांत को मुसलमानों के हृदय पर अंकित करने का प्रयत्न किया है, जिसका कुरान 9 ई० प्र०-"मेडीवल इंडिया". पृ० ६२ । ४ गोरखनाथ संबंधो अपने अनुसंधान का मैं एक अलग निबंध में समावेश कर रहा हूँ।