पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/३७

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हिन्दी-निरुक्त : ३९
 

हिन्दी में विधी अन्नक' और 'बिथरे केश' आप ने देने हैं । मनुलव ठिसकी हुई अन छिटके हुए का। बिखरे भी विथुरे' का ही अपर रूप है---धू को छ । एक महाशाम की जगह इमरा महा- प्राण । 'विथरे का प्रयोग कोमलना और स्निग्धता लिए हुए है और 'विखरे में रूखापन है। 'केश दिछरें तभी कहेंगे, जब वैमो स्थिति हो । इसी अर्थ-भेद मे मब्द-भेद हुआ होगा। परन्तु 'वियुरः' कहां से आया. जिनका वहुवचन वह विचरे है और स्त्री-लिङ्ग विथुरी: ___ संस्कृत का एक पद है 'विधुर । विधुर का अर्थ है वियोगी स्वजन-वियुक्त । इसी का आगे हव-विनाम दिया' के रूप में हुआ, जिसका अर्थ अलग-अलग', 'छिटके हए' इत्यादि हआ।धको थु और अन्न में हिन्दी में -विभयिन-- (1) सवर्ण-दीर्घ और 'विथुरा ! 'विथुरा का प्रयोग हिन्दी में प्रायः बहुवचन में ही होता है--विथुरे ! सो भी, केशों के ही लिए । अन्यत्र 'थ्' को हो जाता है। नाज पूरब में 'बिथरता है', अन्यत्र विखरता है। अर्थात् केशों से अतिरिक्त कहीं 'बियरना' चलता है; पर 'विथरे गेहूँ न होगा। इसी तरह 'मुबरा' भी है-साफ-सुथरा । शुद्ध-साफ, साफ-सुथरा। 'शुद्ध' के को स् और का लोप- 'मुध!' 'धू को थ् और अन्त में 'र' का आगम, जैसे 'मधु' से 'मधुर संस्कृत में ! फिर अन्त में बही पुं-विभक्ति---'आ' । वन गया 'सुथरा' । अन्यत्र 'शुद्ध' से 'सुध' बना; तब 'थ्' हुए बिना भी 'र' का आगम और 'आदिभक्ति-सुधरा' ! 'सुधरा और 'मुयरा' में अन्तर है, अर्थ में विशेषता है; इसीलिए द्विधा विकास । साहित्य में 'शुद्ध' भी चलता ही है, अपने शुद्ध अर्थ में । शुद्ध, सुधरा, सुथरा; यों निरूप हुआ--दूध, दही, रबड़ी! यही नहीं: 'शुद्ध' का एक और रूप भी है--'सुध'-'बड़ा सुध मन ई है। जन हिन्दी में 'सादा' आया, तब मेरठी ने भी सुध ले लिया, अपनी वही 'आ' विभक्ति लगाकर--सुधा पर 'सादा' के साथ उसे 'सीधा कर लिया-'सीधा-सादा'। 'आ' के समीपतर 'ई है-कण्ठ से तालु । ऊतो परले निरे पर है-'कमळ से ओष्ठ की दूरी ! ___ 'द' को 'ब' होते भी देखा गया है। हिन्दी में। दोनों अपने-अपने वर्ग के ततीय हैं, अल्पप्राण । हिन्दी के जब, तब और कब में यह वर्ण- विकार स्पष्ठ है। संस्कृत के यदा, नदा और कदा के रूपान्तर है;