अनुवाद और भाष्य का नाम ज़ेन्द है, भाषा का नहीं। वेदों की तरह अवस्ता के भी सब अंश एक ही साथ निर्म्माण नहीं हुए। कोई पहले हुआ है, कोई पीछे। उसका सबसे पुराना भाग ईसा के कोई ६०० वर्ष पहले का मालूम होता है। जैसे परजिक भाषा रूपान्तर होते-होते, पहलवी भाषा हो गई, वैसे मीडिक भाषा को कालान्तर में कौन सा रूप प्राप्त हुआ, इसका पता नहीं चलता। परन्तु वर्त्तमान काल की कई भाषाओं में उसके चिह्न विद्यमान हैं। अर्थात् इस समय भी कितनी ही भाषायें और बोलियाँ विद्यमान हैं जो पुरानी मीडिक, या उसके रूपान्तर, से उत्पन्न हुई हैं। इसमें से गालचह, पश्तो, आरमुरी और बलोक मुख्य हैं। इनके सिवा कुर्दिश, मकरानी, मुञ्जानी आदि कितनी ही बोलियाँ भी इसी पुरानी मीडिक भाषा से सम्बन्ध रखती हैं। औरों की अपेक्षा पश्तो भाषा का साहित्य कुछ विशेष अच्छी दशा में है। उसमें बहुत सी उपयोगी और उत्तम पुस्तकें हैं। पर पश्तो बड़ी कर्णकटु भाषा है। कहावत मशहूर है कि अरबी विज्ञान है; तुर्की सुघरता है; फ़ारसी शक्कर है; हिन्दुस्तानी नमक है; और पश्तो गधे का रेंकना है।।
पुरानी संस्कृत
आदिम आर्यों की जो शाखा ईरान की तरफ़ गई उसका और उसकी भाषाओं का संक्षिप्त वर्णन हो चुका। अब उन आर्यों का हाल सुनिए जो ख़ोक़न्द और बदख़्शाँ का पहाड़ी देश छोड़कर दक्षिण की तरफ़ हिन्दुस्तान में आये। आदिम आर्य्यों