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पृष्ठ:हिन्दी भाषा की उत्पत्ति.djvu/२५

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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।

की क्यों दो शाखायें हो गईं? क्यों एक शाखा एक तरफ़ गई, दूसरी, दूसरी तरफ़—इसका ठीक उत्तर नहीं दिया जा सकता। सम्भव है, धार्मिक मत-भेद के कारण यह बात हुई हो। या ईरानी आर्य्यों की राज्यप्रणाली हमारे पुराने आर्य्यों को पसन्द न आई हो। क्योंकि ईरानी लोग बहुत पुराने ज़माने से ही अपने में से एक आदमी को राजा बनाकर उसके अधीन रहने लगे थे। पर हिन्दुस्तान की तरफ़ आनेवाले अर्य्यों को यह बात पसन्द न थी। अथवा आर्य्यों के विभक्त होने का इन दो में से एक भी कारण न हो। सम्भव है वे यों ही दक्षिण की तरफ़ आने को बढ़ते गये हों। क्योंकि जो जातियाँ अपने पशु-समूह को साथ लिये घूमा करती हैं वे स्थिर तो रहती नहीं। हमेशा ही स्थान-परिवर्तन किया करती हैं। अतएव सम्भव है आर्य्य लोग अपनी तत्कालीन स्थिति के अनुसार हिन्दुस्तान की तरफ़ यों ही चले आये हों। चाहे जिस कारण से हो, आये वे लोग इस तरफ़ ज़रूर और आकर क़न्धार के आस-पास रहने लगे। वहाँ से वे काबुल की तराई में होते हुए पंजाब पहुँचे। पंजाब में आकर उनकी एक जाति बनी। बदख़्शाँ के पास वे लोग जो भाषा बोलते थे उसमें और उनकी तब की भाषा में अन्तर हो गया। पंजाब में आ कर बसने तक सैकड़ों वर्ष लगे होंगे। फिर भला क्यों न अन्तर हो जाय? धीरे-धीरे उनकी भाषा को वह रूप प्राप्त हुआ जिसे हम पुरानी संस्कृत कह सकते हैं। यह भाषा उस समय पंजाब और पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में बोली जाती थी।