इससे यह नहीं ज्ञात होता कि किसने मारा? "मैंने मारा,"
"तुमने मारा," "उसने मारा," "उन्होंने मारा” जो चाहे
समझ लीजिए। "मारा" का रूप सबके लिए एक ही रहेगा।
इससे साबित है कि ये बाहरी और भीतरी शाखायें जुदी-जुदी
भाषाओं से निकली हैं। इनका उत्पत्ति-स्थान एक नहीं है।
भीतरी शाखा जिन प्रान्तों में बोली जाती है उनकी उत्तरी
सीमा हिमालय, पश्चिमी झीलम और पूर्वी वह देशांश रेखा है
जो बनारस से होकर जाती है। पर पूर्वी और पश्चिमी सीमायें
निश्चित नहीं। उनके विषय में विवाद है। वहाँ भीतरी और
बाहरी शाखायें परस्पर मिली हुई हैं और एक दूसरी की सीमा
के भीतर भी कुछ दूर तक बोली जाती हैं। यदि इन दोनों
सीमाओं का आकुञ्चन कर दिया जाय, अर्थात् वे हटाकर वहाँ
कर दी जायँ जहाँ भीतरी शाखा में बाहरी का ज़रा भी मेल
नहीं है, तो उसकी पूर्वी सीमा संयुक्त प्रान्त में प्रयाग के याम्योत्तर और पश्चिमी, पटियाले में सरहिन्द के याम्योत्तर कहीं हो
जाय। यहाँ इस शाखा की भाषायें सर्वथा विशुद्ध हैं। उनमें
बाहरी शाखा की भाषाओं का कुछ भी संश्रव नहीं है। सरहिन्द और झीलम के बीच की भाषा पञ्जाबी है। यह भाषा
भीतरी शाखा से ही सम्बन्ध रखती है, पर इसमें बहुत शब्द
ऐसे भी हैं जो इस शाखा से नहीं निकले। इस तरह के शब्दों
की संख्या जैसे-जैसे पश्चिम को बढ़ते जाइए, अधिक होती जाती
है। मालूम होता है कि इस प्रान्त में पहले बाहरी शाखा के