कोशल और विज्ञान आदि के पारिभाषिक शब्दों का भाव यदि
संस्कृत शब्दों में दिया जाय तो हर्ज नहीं। इस बात की शिकायत नहीं। शिकायत, साधारण तौर पर, सभी तरह की
पुस्तकों में संस्कृत शब्द भर देने की है। इन्हीं बातों के ख़याल
से गवर्नमेंट ने मदरसों की प्रारम्भिक पुस्तकों की भाषा बोलचाल की कर दी है। अतएव हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखकों को
भी चाहिए कि संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग यथासम्भव
कम किया करें।
प्राचीन आर्य्य जब भारतवर्ष में पहले पहल पधारे तब
भारतवर्ष उजाड़ न था। आबाद था। जो लोग यहाँ रहते
वे आर्य्यों की तरह सभ्य न थे। आर्य्यों ने धीरे-धीरे उनको
आगे हटाया और उनके देश पर कब्ज़ा कर लिया। प्राचीन
आर्य्यों के ये प्रतिपक्षी वर्तमान द्राविड़ और मुंडा जाति के पूर्वज
थे। उनमें और आर्य्यों में वैर-भाव रहने पर भी कुछ दिनों
बाद सब पास रहने लगे। परस्पर का भेद-भाव बहुत कुछ
कम हो गया। आपस में शादी-ब्याह तक होने लगे। परस्पर के रीति-रस्म बहुत कुछ एक हो गये। इस निकट सम्पर्क
के कारण द्राविड़ भाषा के बहुत से शब्द संस्कृतोत्पन्न आर्य्य-भाषाओं में आ गये। वे प्राकृत और अपभ्रंश से होते हुए
वर्तमान हिन्दी मेँ भी आ पहुँचे हैं। यद्यपि उनका वह पूर्वरूप
नहीं रहा, तथापि ढूँढ़ने से अब भी उनका पता चलता है।
आदिम आर्य्य एशिया के जिस प्रान्त से भारत में आये थे उस