पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२८०

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जापान २४७ .पी गताप्दोमें स्थापित 'गाई' और 'शिदन' गाया ' साथ माय राजनैतिक विमें भी यपेट कार्य कर दिखाया प्रय भी सम्म भावमे विद्यमान है। माय: सात सौ था। 'मामिदा के उपामों के समान घमंग्या न होने वर्ष पहले भी विशेषतः फशिवारा युगमें इनका प्रभाव ' पर भी, इस मम्प्रदाय के गिय आणनमें बहुत है। . मिर्फ कम्ता और साहित्य पर ही निवड न था, कि जापानी 'जन' गाद ध्याम गदका अपग है। राष्ट्रनैतिक पीर मेना-सम्बनी कार्योंमें भी उनका 'मन' गावा धोनके योधिधर्म सग प्रयतित ची। प्रभाव देखा जाता था। कारण, ये अपने मम्प्रदायम। कहा.जाता है कि ईसाशो यो गताप्दीमें या धर्म कुछ मिशुक में निक रहते थे और कभी कम भाई पर प्रयतित मा घा, यिन्तु माटमें यह वितुम हो गया। भी सेना मसाते थे। यही कारण है कि राष्ट्रपति मर्षदा| इसके परयः पथिकगा' युगमें इसका प्रभाय वय मद इनमे हरा करती थी। ईमाको १६वो शताब्दी में यह गया था। इस सम्प्रदाय के पुरोहिसान फ्रामके कार्डि प्राफत राष्ट्रक लिए पसनो हानिकारक हो गई कि नामकी तरह राजनीतिक नेहव किया था। 'नोमा' और हिंदयमोमिन 'हाईसान' और 'नेगोगे इस मम्प्रदायके विषय में Rधान उपयोग्य बात यह उन दो स्थानों के सहों का ध्यम कर डाका रम प्रकार कि, शापानके मैनिक-यगो के मोगाने भी उभे अपनाया धर्म सम्प्रदायको गष्ट्रिीयहि नट हो गई। थापन शासपीके भी अनेक भेद-प्रभेद हैं। ईमाकी १२यौं गताग्दीमें यौइधर्मकी नवीन नवीन ____जापान में जिन्ता-धर्म-जापानम गीतमबुह, ईमा शाखाए अभ्यु दित हुई पीर वे साधारण लोगों को धर्मा समी या कानपु.ली, उन मय सपामा मोद है। कामाको निति करने लगी तथा नापानके धर्मः। परन्तु जिन्सो-धर्म जापानका राजधर्म पीर इसीलिए जीवनक पस्तित्वका परिचय देने लगी। यह प्रत्येक ही पुरुषका धर्म हो गया था। मकै हारा इन नयीन शाखामोमि', 'जैदी' पौर 'शिनम्' नामक उनके दैनिक जीवन पीर चिमालिका संगन दुपा दो शाखाएँ यह शिक्षा देती है कि “निर्वाप्पप्राप्तिके | है। मोने जापानी पदय भयं स्वदेशहितपिता लिए सबसे उत्कट उपाय 'पामिदा मे सपा-भिश करना का भाव पैदा किया है। यूरोप पोर पमेरिका धर्म में । 'पामिदा' अपने उपामकों के लिए उनकी मृत्यु के वाघाचर पोर घाव चिक्य होने पर भी, जापान के बाद-वर्गमे यासस्थान नियुका कर देते हैं।" जैदी मामने व प्राणहीन निधि है। जापान निम भाग्याका मत मातीन रीतिके पनुसार है; चीनको मन्दिरी माघ सनकी तुममा रनमे ऐमा प्रसीस सोग 'मामिदा'-उपामनामे इसका विशेष पार्यषय नहीं है। लगता है, मानो जापान में प्रात धार्मिक का प्रभाव ही परन्तु इसमें सन्देश नहीं कि 'गिन' गावाको उपमा हेपि गहरी गिगाह से देयने पर यह माफ मालम मंमारमेंदूमरी नहीं है। इस शाखाके पुरोहित वियाह हो जाता कि मागान मनीन देवालयों में बाधा करते और मांस खाते हैं। इसकी कोई स्थायी पाय नहीं। हायर न होने पर भी महताका गमास नहीं है। माधारपके वकालत दान हो रमका भाधार । जिनो धर्म के विषय, "पिकाको रान' नामक इम गारवाके धर्म-मन्दिर जापानमें सबसे बड़े और मुविख्यात विज्ञानका कहना है-जिन्तो धर्म में प्रेमी विशिष्टताको लिए हुए है। इम शाखाके पुरोहितोमि । कोई गूिद जीवनीमा नहोमो पुजाधार चोर कंच नीचकामी मंद होता है। समसिमे मो गम्मोर होममें तीन मिर्गय गुपर- बोधर्म की "निचिरैन' गाणा जापानकी नित्र १ मसानोधित धर्म वा मातापिताके प्रति पनुगर, सम्पत्ति। म गावाने 'पामिदा'-उपासनाके विरह २ क प्यकर्म में पामणि पोर ३ कारएका पनु. 'क' या ऐतिहासिक बुहकी पूनाका पुन: प्रचलन मन्यान दिना किये किमी एक विप हावरे लिए करना पाया। रमके प्रतिष्ठाता निचिन' जापानी प्रार-विमान देना ! यह धम पाया है, पर मैतिक रतिहारके एक भालर मूर्ति है। उन्होंने धर्म प्रचारक मरिमें परिवर्तित हो जापानका उदय :-