पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निता . ३२६ - १म, घायु-ये जिद्धाको मांसपेशियों पर। सकता और दाममे चबाना भो हमके लिए दुष्कर। सर्वत्र फैली हैं। इमोहाग पचालनगति उत्पन्न होतो। उक्त टीपा या जोमको लगामको काट देने से बालकको है। इन सायुके महापित अथवा विच्छिम हो जाने | जिहा स्वाभाविक प्रवस्थाको प्राप्त होती है। अन्यान्य पर जीभ शिलाई नहीं जा सकतो किन्तु इमको इन्द्रिय पान उपजिहा तक विस्त न है। उपजिना एक बारोक शक्ति नष्ट नहीं होती। मनोपास्थिमय पत्र है। यह वासनानोका हार स्वरूप है २य, जैवगाग्वाम्नायु (कभी कभी इमको स्पर्ग: नया वाम नेते समय कुछ हरती पौर फिर पपनी जगह नायु भी कहते है)-इन मायु मे शोत उष्णताका पर पा जाती है। इसके बगलों में दो सा हैं, जिनको जान और स्पर्य ज्ञान होता है। ये जिद्धाके अग्रभाग नलोहारका स्तम्भ कहते हैं, इस नगह मुहविपर कुछ पास ज्यादा है और इस अंगका इन्द्रिपजान भौ अन्याय अगस्त है । जिताकगट क के पीछे की तरफ मिन्त्रादेशमें मंशाम अधिक। कई एक बड़ी घड़ी मेमिक प्रन्थियां जो सम्मी पौर . ३य, पाखाद वायु-दमके कुछ अंश लोभके माय | प्रशस्त नली तक विस्त हैं । इस स्थानसे लार निकम मिले हैं। इस सायुमे जोममें पाखाद-शकि आतो है। यार जोमको हर वक्त भिगोये रमतो है । मोपेको सरफ द्रव्यो किम गुण पालादका जान होता है. इसका जीभ अग्रभागये लगा कर लगाम तक जो एक लम्बी अभी तक निर्णय नहीं हुया। स्वादेन्द्रिय के माय प्रारी | लोरमो है, वह अपरकी पपेचा कुछ गहरीसके न्द्रियका कुछ मेल है। उसे जा ट्रयक होने पर इन्द्रिय दोनो जगल कुछ नमे हैं और जोमके पप्रभागके नीचे शक्ति बढ़ती है। ज्यादा स्वाद पानेके अभिप्रायसे मनुष्य । ही एक नैमिक प्रन्थि गुच्छ है । युरोपमें यह ग्रन्यि गुच्छ पोठों के साथ जीभको दायता और एक प्रकारका शब्द नाक-गु कहलाता है. क्योंकि १८. नाक भारता है। दो तरहको दी चीजों के खनिमे, अन्तमें जो । (Nuck) साहमने इसका भाविष्कार किया था। जीमके जायो जाय, उसका स्वाद ज्यादा मातम होता है। पोछेकी तरफका पाखरो हिरमा चिपटा पोर वगल में मागे धाोंगो कार्य भो इमो तरहका है। पहले एक मूलास्थि के पास कुछ विस्त है। जोमकी पेगिया दो रंगको देख कर, पीछे यदि दूसरा एक रङ्ग देखा जाय, तरहकी हैं। एक तो वाधपेगी, जिमशेद्वारा मोमका • तो अन्सा देखा पा रंग हो आँखों में ज्यादा अमर अन्य स्थानके साथ सम्बन्ध है, और वह सस उस स्थान डालेगा। . पर जा सकती है। तया टूमरो पभ्यन्तर पेगो मुम्पतः ___जिवाशे ऊपर, पासपाम और नीचे के पूर्ववर्ती दमीसे भीम वमो है पोर रसीके लारा नीमका एक पंप पंग भन्य किमी पंग माय संयुक्त नहीं है; परन्तु दूसरे अंश पर ना मकता है। पन्यान्य अंग प्रेममय झिनियों द्वारा निकटा पेशियों ____मनुष्योंकी मित्राके साथ परोको निहाका कुछ में माथ संयुश है। जो जो स्थान उड़ा मिनिश के हारा माश्य है। जो पर राय ( रोमन्य) करके पति है, मुम्पमध्यस्थित अन्यान्य स्थानों के माथ जुड़े हैं, उन उन उनकी जीभकी पातति कामलाको भौति । शुराफा म्यानों में कई एक तह हैं। इन ती मूक्ष्म पेगोमूव है। और पिपीलिकामचोको जोम वहत मन्त्री होती है। जो जीभको अन्य स्थानके माथ मयुत करने के लिए ! जुराफामोंकी जोम उनके खाद्य पदार्य धारण करने बन्धनस्वरूप हैं। प्रधान पटल वा तहको जीभकी लगाम के लिए एक प्रधान पौर विगिर उपाय है । पिपीलिका. ( rroluum bridli: ) कहते हैं। इमी रहनेमे ही भचियों को जोम बहुत मसोली होती है, ये पीपिसिका. जोभका भागेका हिसा मुके भीतर घोडशो पोर । म्त पझे भीतर जीभ घुमेद देते हैं, जिससे पिपीलिकाएँ ज्यादा फिराया नहीं जा पाता । किमो किमोका यह रनको जोमसे मट कर मुख चलो जातो है। पन्धनमत्र ( टॉपा) जोमले पप्रभाग सक विम्त त होता माजार जातीय पापोंको नीम, भिषाकार काटे है। जिस महका ऐसा होता है, वह वास नहीं कह नहीं होते; इनके कार्ट टेद, बड़े पर कई होते हैं। Vol. VIII. 13